रेशे अत्यंत कोमल होने से बेस्ट क्वालिटी का कपड़ा
लाल अंबारी (पटवा) की खेती बिना सिंचाई के हो जाती है और पशुओं द्वारा भी कोई भी प्रकार का नुकसान नहीं होता। लाल अंबारी के रेशे बहुत ही कोमल होते हैं जिससे गुणवत्तापूर्ण कपड़ा तैयार हो रहा है। खेती आसानी से टिकरा या बेकार जमीन पर की जा सकती है। लाल अंबारी पटवा एक मालवेसी कुल का पौधा है जिसे वैज्ञानिक नाम हिबिसकस सबडेरिफा है। इसे अलग-अलग राज्य में अलग-अलग नाम से जाना जाता है।
अंबारी पटवा में औषधि गुणों की भरमार
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, यह पौधा औषधीय गुणों का भरपूर है। इसके जूस में एंटी आक्सीडेंट एवं प्राकृतिक भोजन के रूप में काम आती है। इसका जूस कैंसर, शुगर, हाईपरटेंशन में गुणकारी होता है। इसके पौधे में प्रचुर मात्रा में खनिज पदार्थ, फेयर एवं मैग्नेशियम तथा विटामिन्स के साथ एस्कार्बिक एसिड आदि भी पाए जाते हैं। औषधि गुण में एन्टी हाइपरटेक्सीव, एन्टी सेप्टिक, सेडेटिव, अयुरेटिक, पाचनशील, परगेटिव, डेमूसूसेन्ट आदि गुण होते हैं।
महिला कृषक की यह बड़ी सफलता : कृषि वैज्ञानिक
कृषि विज्ञान केंद्र जांजगीर-चांपा के प्रभारी केडी महंत ने बताया कि जिले की महिला कृषक पार्वती देवांगन ने नवाचार करते हुए पूरे भारत वर्ष में लाल अंबारी पटवा के बेकार रेशे का उपयोग कर कपड़ा तैयार करने में सफलता हासिल की है। इस नवाचार में कृषि विज्ञान केंद्र की भी भूमिका महत्वपूर्ण है। इससे उच्च गुणवत्ता का कपड़ा तैयार हुआ है। इससे अंबारी पटवा की खेती का क्षेत्र बढ़ेगा वहीं किसानों की आदमनी भी बढ़ेगी।