जिले में छोटे बड़े व्यवसायियों को मिलाकर १० हजार व्यवसायी हैं। इन्हें खाद्य पदार्थों की बिक्री के लिए खाद्य अधिनियम के तहत पंजीयन कराना अनिवार्य होता है। इतना ही नहीं दुकानों में जो खाद्य सामाग्री की बिक्री कर रहे हैं वह मिसब्रांड नहीं होना चाहिए। जांच के दौरान पकड़े जाते हैं तो अधिनियम के तहत कड़ी कार्रवाई का प्रावधान होता है। जिसमें २० से ३० हजार रुपए का जुर्माना व जुर्माना नहीं पटाने की शर्त पर सजा का भी प्रावधान होता है।
सालाना 80 प्रकरण का टारगेट
खाद्य सुरक्षा अधिकारी डीके देवांगन ने बताया कि सालाना उनकी टीम द्वारा ७० से ८० प्रतिष्ठानों में छापेमारी कर प्रकरण बनाया जाता है। खाद्य पदार्थों का सेंपल लिया जाता है। सेंपल को रायपुर स्थित लैब भेजा जाता है। फिल लैब से जो रिपोर्ट आती है उस हिसाब से कार्रवाई की जाती है। देवांगन ने बताया कि ३० प्रतिशत सेंपल मिसब्रांड पाए जाते हैं। शेष प्रकरण में प्रतिष्ठानों के खिलाफ जुर्माना किया जाता है।
इस तरह होती है समझौता
खाद्य सुरक्षा अधिकारी दुकानों में पहुंचते हैं। वे सामान का सैंपल लेना शुरू करते हैं। इससे व्यवसायी डर जाता है। वह चाहता है कि उसके दुकान के खाद्य पदार्थों का सेंपल लैब न भेजा जाए। इस दौरान वह खाद्य सुरक्षा अधिकारी से समझौता को राजी होता है। अफसरों द्वारा मोटी रकम की मांग की जाती है। आखिरकार मामला १५ से २० हजार रुपए में सेटलमेंट हो जाता है। कई व्यवसायी ऐसे होते हैं जो अफसरों के आते ही पहले से समझौता करने लग जाते हैं। क्योंकि उन्हें पता होता है कि बाद में लपेटे में आ जाएंगे तो बुरे फसेंगे। इससे पहले ही वह अफसर से संपर्क कर लेता है।
-हमारा काम ही होता है खाद्य पदार्थों की जांच कर सेंपल लैब भेजना। यह आरोप बेबुनियाद है। कार्रवाई से बचने के लिए व्यवसायी कुछ भी बोलता है। हमारा काम व्यवसायियों के खिलाफ एक्शन लेना है।
-अजीत बघेल, खाद्य सुरक्षा अधिकारी