जांजगीर चंपा

चार बहनों ने मिलकर रखी समाज सेवा की बुनियाद

डॉक्टर बहनों के इस नेक कदम की चारों तरफ हो रही है सराहना

जांजगीर चंपाNov 10, 2019 / 07:31 pm

sandeep upadhyay

चार बहनों ने मिलकर रखी समाज सेवा की बुनियाद

रायपुर. हिंदू धर्म में जहां बेटियों को गृहणी के रूप में देखा जाता है। मांगलिक कार्यों के अतरिक्त उन्हें दूसरे कर्म कांडों से दूर रखा जाता है। इस विचार को रायपुर की चार डॉक्टर बहनों ने पूरी तरह से बदल दिया है। लावारिश शवों का अंतिम संस्कार करने की चुनौती लेकर वह ऐसा कार्य कर रही हैं, जो शायद पुरुष भी करते तो किसी चुनौती से कम नहीं होता। उनके इस नेक काम की चारों तरफ चर्चा हो रही है।
पत्रिका की एक्सपोज टीम ने उन्होंने नेक कार्य को इस तरह से साझा किया। हम बात कर रहे हैं मठपुरैना क्षेत्र में रहने वाली चार डॉक्टर बहनों की जो चार अन्य महिलाों के साथ मिलकर अज्ञात शवों का कफन दफन करने का कार्य कर रही हैं। जब भी उन्हें सूचना मिलती है कि किसी अज्ञात कीमृत्यु हो गई है और उनके परिजनों का पता नहीं चल रहा है तो समूह उन शव का अंतिम संस्कार कनरे पहुंच जाती हैं। पेशे से डॉक्टर डॉ. निम्मी चौबे ने पत्रिका से बात करते हुए बताया कि उनकी बहन डॉ. शोभना तिवारी, एकता शर्मा और प्रतिभा चौबे ने मिलकर यह समूह तैयार किया है। इसमें उनके साथ उनके घरों में काम करने वाली महिलाएं चंदा प्रजापति, दुर्गा, मिथिला धीवर और राखी भी पूरा सहयोग करती हैं। इन आठों महिलाओं का समूह मिलकर यह पुण्य का कार्य कर रही हैं। डॉ. निम्मी बताती हैं कि उनके माता पिता नहीं हैं। उनकी दी गई सीख की बदौलत ही वह आज यह कार्य कर रही हैं। उनकेमाता पिता ने उन्हें सिखाया है कि जिनके अपने होते हैं उनकी मदद तो सभी करते हैं, लेकिन जिनका अपना कोई नहीं होता (अज्ञात) उनकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आता है। असली पुण्य का कार्य ऐसे अज्ञात लोगों की मदद करना ही है। इसी सीख की बदौलत निम्मी ने जब अपने परिवार और बहनों के सामने यह विचार रखा कि वह अज्ञात शव का अंतिम संस्कार अपने खर्च से करेंगी तो सभी अचंभित हो गए थे। शुरूआत में उन्हें काफी अटपटा भी लग रहा था, लेकिन जब उन्होंने पहले अज्ञात शव का कफन दफन कराया तो उन्हें इतना शुकून मिला कि अब यह सिलसिल रुकने वाला नहीं है।
खुद उठाती हैं पूरा खर्च

डॉ. निम्मी ने बताया कि थानों से उन्हें कॉल आता है कि किसी अज्ञात की मौत हो गई है तो वह वहां जाती हैं और अज्ञात शव को अपनी सुपुर्दगी में लेती है। एक दो दिन इंताजर के बाद जब उनके परिजन नहीं मिलते तो उस शव को दफनाने का कार्य उनके द्वारा कराया जाता है। एक शव कफन दफन करने में लगभग दो-तीन हजार रुपए का खर्च आता है, जो कि वह खुद ही वहन करती हैं। इस कार्य के लिए वह किसी बाहरी संस्था या सरकार का सहयोग नहीं लेती हैं।

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