घूमते-घूमते वह जम्मू बॉर्डर पार कर पाकिस्तान पहुंच गया। पाकिस्तान के सैनिकों ने उसे जासूस समझकर जेल की सलाखों में भेज दिया। परिजनों को पता चला तो उन्होंने घनश्याम को छुड़ाने जांजगीर-चांपा जिला प्रशासन से गुहार लगाई। इस दौरान कागजी कार्यवाही में प्रशासन को साल-दो साल लग गए।
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बड़ी मुश्किल से कलेक्टर एवं एसपी के द्वारा बनाई गई एक संयुक्त टीम घनश्याम को लेने पाकिस्तान गई और मंगलवार को उसे स्वदेश लाकर परिजनों को सौंप दिया है। टीम में तहसीलदार रामविजय शर्मा, एसआई शिवचरण चौहान, घनश्याम का बड़ा भाई प्रेम जाटवर शामिल थे।
पांच साल जेल में रहकर सही यातनाएं
घनश्याम ने परिजनों को बताया कि उसने पांच साल पाकिस्तान की जेल में काटे। वहां के सैनिक व पुलिस भारतीयों को लगातार यातनाएं देते हैं। वहां भारतीयों के लिए जेल में अलग से बैरक बनाया गया है। जहां उन्हें रखकर जलील किया जाता है।