सम्मेलन में डॉ. हर्षाना रामबुकवेला ने भाषा, साहित्य और संस्कृति की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस आधार पर न सिर्फ देश को परिभाषित किया बल्कि श्रीलंका की संस्कृतियों से भी प्रतिभागियों को अवगत कराया। उन्होंने अपने लेक्चर के दौरान कई अहम बाते बताईं और प्रतिभागियों के सावालों का जवाब भी दिया। डॉ. अनूप तिवारी ने उपस्थित सभी वक्ताओं तथा प्रतिभागियों का स्वागत किया और कहा कि सीमाएं देश को बांटती हैं तथा संस्कृति इसे जोड़े रखती है। डॉ. समीर बाजपेई ने बताया कि भाषा, साहित्य तथा संस्कृति हर देश की पहचान होते हैं। बिना इसके किसी देश की पहचान नहीं हो सकती। उन्होंने ये भी कहा कि टेक्नोलॉजी के प्रभाव से सांस्कृतिक विविधता कम होते जा रही है। दो दिन चलने वाले इस सम्मेलन में भाषा और भाषाविज्ञान , साहित्य और समाज, संस्कृति और राष्ट्र जैसे विभिन्न विषयों पर चर्चा की जाएगी। इसमें लगभग 8 प्रदेशों के 90 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया है । डॉ. शशिकांत तराई, डॉ. संदीप सरकार सम्मेलन सचिव तथा डॉ. सोमदेव कर, डॉ. समीर कर्माकर, डॉ. सुरंजना चौधरी डॉ.वाई. विजया बाबू, डॉ. मोक्षा सिंह, डॉ. भावना यादव, डॉ. बिनोद शॉ, डॉ देबाशीष मिश्रा ने आयोजन समिति के सदस्य के रूप में बहुमूल्य योगदान दिया ।