नगर सरकार... बीडीएम और तिवारी बालोद्यान की तरह पटेल उद्यान का भी कायाकल्प कराने दीजिए ध्यान
जिला मुख्यालय जांजगीर में हाईस्कूल मैदान के सामने स्थित सरदार पटेल बालोद्यान अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है मगर इसकी बदहाली नगर सरकार को नजर नहीं आ रही है तभी शायद शहर के बाकी उद्यानों को संवारने के लिए जहां लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं तो लाखों रुपए और खर्च करने की तैयारी है। मगर पटेल उद्यान को उसकी बदहाल हाल पर ही छोड़ दिया गया है।
जांजगीर चंपा
Published: April 09, 2022 09:52:23 pm
जांजगीर-चांपा. नगर सरकार का पूरा ध्यान केवल बीडीएम गार्डन को ही संवारने में लगा हुआ है। यहां एक के बाद एक कार्य कराए जा रहे हैं। जबकि पटेल उद्यान की ओर आंखें ही मूंद ली गई है। गौरतलब है कि बीडीएम गार्डन का कई बार कायाकल्प कराया जा चुका है। नया प्रवेश द्वार तक बनाया गया है जिसके लिए लाखों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। अब फिर से दोबारा वहां ४० लाख रुपए खर्च करने नगरपालिका ने पूरी तैयारी कर ली है। पिछले दिनों शहर में पहुंचे विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत के हाथों ४० लाख रुपए के कार्यों के लिए भूमिपूजन भी कराया जा चुका है। टेंडर की प्रक्रिया चल रही है। एजेंसी तय होते ही काम कराया जाएगा। बताया जा रहा है कि गार्डन के भीतर जो खाली एरिया है उधर को डेवलप किया जाएगा। इसी तरह माधव मार्केट के सामने स्थित पं. जगदीश तिवारी स्मृति तिवारी बालोद्यान का भी नए सिरे से कायाकल्प कराया गया है। इसके बाद यहां प्रतिमा स्थापित की जाएगी। इसके लिए डीएमएफ से ८ लाख रुपए खर्च होंगे। इस कार्य का टेंडर भी हो चुका है और एजेंसी भी तय हो चुकी है। यानी जल्द ही प्रतिमा लगाने का काम होगा। हालांकि जिस तरह बीडीएम गार्डन और तिवारी बालोद्यान का कायाकल्प कराया जा रहा है वह बेहतर प्रयास है और शहरवासियों के लिए अच्छा है मगर एक को संवारने में दूसरे की लगातार नजरअंदाजी करना कहां तक उचित है। पालिका की सूची में सरदार पटेल बालोद्यान को संवारने के लिए फिलहाल कोई प्लान नहीं है।
फौव्वारा और वॉटर फाल सालों से बंद
पटेल बालोद्यान को जब बनाया गया तो यहां की सुंदरता देखते बनती थी। यहां लगाए गए वॉटर फॉल और रंग-बिरंगे लाइट और फौव्वारा के चलते इस उद्यान की सुंदरता पर चार चांद लगते थे। लोगों के लिए घूमने-फिरने के लिए पटेल उद्यान शहर का पसंदीदा स्थान था मगर समय के साथ इसकी सुंदरता पर ग्रहण लगता गया। वॉटर फॉल और रंग-बिरंगे लाइट बदरंग हो गए। फौव्वारा की फुहारें बंद हो गई। बीच-बीच में फौव्वारा और वॉटर फाल को शुरु कराने जरुर मेंटनेंस के नाम पर लीपापोती हुई मगर चंद दिनों की ही चांदनी रही। फौव्वारा और वॉटर फॉल की सुंदरता देखे लोगों के लिए गुजरे जमाने की बात जैसी हो चुकी है।
झले टूटे पड़े, खंभों की लाइट नहीं जलती
आज स्थिति यह है कि वॉटर और फौव्वारा की बात तो छोड़ ही दीजिए, गिने-चुने बचे ही यहां बच्चों के खेलने के लिए झूले बचे हैं जिसके से कई टूट-फूट भी चुके हैं। जिसे संवारने की बजाए नगरपालिका ने अपने हाल में ही छोड़ दिया है। जिसके चलते ही इस उद्यान से लोगों का मोहभंग हो चुका है। अभिभावकों को यहां आने में यह बात हमेशा खलती है क्योंकि बच्चों के खेलने के लिए न तो पर्याप्त संसाधन है और ही लोगों के दो पल सुकून से बैठने लायक वातावरण। खंभों में लगे लाइट कई जगह पर हमेशा के लिए बुझ चुके हैं जिससे शाम गहराते ही अंधेरा छा जाता है। यहां एक कैंटीन भी बनाया गया है जो सालों से बंद ही पड़ा हुआ है क्योंकि यहां कैंटीन खोलना मतलब घाटे का सौंदा ही साबित होगा। इसीलिए इसमें ताला सालों से लटक ही रहा है।

फौव्वारा और वॉटर फाल सालों से बंद
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