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नीम हकीम के झूठे वादों में पड़कर और बीमार हो रहे पैरालिसिस के मरीज

locationजांजगीर चंपाPublished: Nov 17, 2019 08:10:48 pm

Submitted by:

sandeep upadhyay

– लाखों खर्च कर सालों से दवा कराने के बाद भी नहीं मिल पा रही राहत

नीम हकीम के झूठे वादों में पड़कर और बीमार हो रहे पैरालिसिस के मरीज

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रायपुर. पैरालिसिसि (ब्रेन स्ट्रोक) की बीमारी इन दिनों आम होती जा रही है। जवान से लेकर बूढ़े तक पैरालिसिस के अटैक का शिकार होकर विकलांगता का शिकार हो रहे हैं। शुरूआती दौर में न्यूरोलॉजिस्ट के इलाज से उनका जीवन बच जाता है, लेकिन शारीरिक विकलांगता दूर करने के लिए वह नीम हकीम के झूठे दावों में फंस जाते हैं। रायपुर सहित पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में सैकड़ों की संख्या में वैद्य विसारद, नीम हकीम और पैरामेडिकल की डिग्री लिए लोग अपनी दुकान खोले हुए हैं। यह लोग पैरालिसिस से पीडि़त लोगों को अलग-अलग दवाएं देकर सालों तक उपचार करते रहते हैं। इसका खामियाजा यह निकलता है कि वह ठीक होने की जगह और बीमार होते जाते हैं। जबकि न्यूरोलॉजिस्ट से जब बात की गई तो उनका कहना है कि पैरालिसिस नसों की बीमारी से संबंधित होती है। इसमें चाहिए कि पीडि़त अच्छे और योग्य डॉक्टर से ही उपचार कराएं जिससे उन्हें सही समय पर सही उपचार मिल सके। ऐसे ही नीम हकीमों के इलाज से परेशान पैरालिसिस की बीमारी से पीडि़त शिवकांती उपाध्याय से जब बात की गई तो उन्होंने पूरी सच्चाई बयां की।
उन्होंने बताया कि 20 दिसंबर 2016 को उन्हें पैरालिसिस का अटैक आया था। उस समय उन्हें रायपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लगभग एक हफ्ते भर्ती रहने के बाद उनकी बीमारी में कुछ सुधार हुआ। वहां से डिस्चार्ज होने के बाद उन्होंने लगभग तीन माह तक रेगुलर फिजियोथेरेपी कराई और न्यूरोलॉजिस्ट का उपचार चलाया। इससे वह बैसाखी के सहारे चलने और बोलने लगी थीं। उनका दाहिना हाथ काम नहीं कर रहा था। इसी दौरान उन्हें किसी ने बताया कि बिलासपुर जिले के मस्तूरी क्षेत्र में एक वैद्य है जो ऐसे मरीजों को जल्द से जल्द ठीक कर देता है। वहां दो माह तक इलाज कराने के बाद भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली। छह माह बीत जाने के बाद भी उनके हांथ की विकलांगता दूर नहीं हुई, तो वह हतास होने लगीं। इसी दौरान फिर उन्हें किसी ने रायगढ़ के एक हकीम का पता दिया। वह आयुर्वेद की आड़ में डेकाडॉन इंजेक्शन और एलोपैथ की दवाएं देता था। उन्हें खाने से उनके हांथ में कुछ सुधार तो दिखा, लेकिन सुगर और पीपी की शिकायत होने से उन्हें वह दवा दूसरे कुप्रभाव भी दिखाने लगी। इसके बाद उन्होंने वहां का उपचार बंद कर दिया। रायपुर में होम्योपैथी पद्धति से इलाज कराया, लगभग छह माह में उनको काफी राहत मिली, लेकिन हाथ अभी काम नहीं कर रहा है। इसके बाद फिर से उन्होंने न्यूरोलॉजी के विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाना शुरू किया है। उनकी दवा से उन्हें काफी राहत है और फायदा भी दिख रहा है। शिवकांती उपाध्याय का कहना है कि पैरालिसिस से पीडि़त लोगों को चाहिए कि वह सही उपचार कराएं और नीम हकीमों के चक्कर में न पड़ें। उनका कहना है कि नस की बीमारी का इलाज उससे संबंधित डॉक्टर ही सही तरीके से कर सकता है। ऐसे नीम हकीमों के चक्कर में पडऩे से धन और शरीर दोनों का नुकसान है। उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार से भी मांग की है कि बिना डिग्री लोगों का गलत तरीके से उपचार करने वालों की जांच कर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
पहले जाने फिर कराएं इलाज

न्यूरोलॉजिस्ट और साइकेट्रिस्ट डॉ. प्रमोद गुप्ता का कहना है कि न्यूरो से संबंधित डॉक्टर मानव संरचना सहित एक-एक नस के बारे में पढ़ता है। उसे मालूम होता है कि किस कमी की वजह से कौन सी नस में क्या प्रभाव पड़ेगा और उसका सही उपचार क्या होना चाहिए। उनका कहना है कि लोगों को पहले डॉक्टर के बारे में बता करना चाहिए कि वह किसी विधा का डॉक्टर है। न तो खुद डॉक्टर से पूछ लें। इसमें कोई संकोच नहीं होना चाहिए। उसके बाद सही डॉक्टर से ही उपचार कराना चाहिए। नीम हकीमों के बारे में तो उनका कहना है कि ऐसे लोगों के चक्कर में बिल्कुल न पड़ें। यदि इलाज कराया भी है और उससे कोई नुकसान हुआ है तो उसकी शिकायत भी करें, जिससे उसके खिलाफ कार्यवाही हो और वह दूसरे पीडि़तों को फिर से न ठग सके।

क्या है पैरालिसिस
मस्तिष्क में मौजूद सेल्स की जरूरत को पूरा करने के लिए हृदय से मस्तिष्क तक लगातार रक्त संचार होता है। जब रक्त की आपूर्ति में किसी कारण बाधा आती है तो मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं। इससे ऑक्सीजन की आपूर्ति दिमाग तक नहीं हो पाती है। इसी से ब्रेन स्ट्रोक। यह मस्तिष्क में ब्लड क्लॉट बनने या ब्लीडिंग होने से भी हो सकता है। जब खून की नलिकाएं फट जाती हैं तो इसे ब्रेन हैमरेज और नलिकाओं में ब्लॉकेज होने से स्ट्रोक होता है तो इसे ब्रेन इंफॉर्कट कहते हैं।ब्रेन स्ट्रोक कोई नई बीमारी नहीं है। आयुर्वेद में हजारों साल पहले ही इस बीमारी का वर्णन चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे कई ग्रंथों में किया गया है।
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