जिला मुख्यालय जांजगीर का जैसे-जैसे आबादी क्षेत्र का दायरा विकसित होता जा रहा है, वैसे-वैसे बांस-बल्लियों में बिजली कनेक्शन खींचने की संख्या भी बढ़ती जा रही है। क्योंकि आउटर में घर बनाने के बाद वहां तक बिजली कनेक्शन ले जाने के लिए खंभा नहीं लगाया जा रहा। बिजली विभाग खंभा से 30 मीटर से ज्यादा दूरी होने पर स्थायी कनेक्शन नहीं देता। ऐसे में खंभे से घर की दूरी ज्यादा होने पर अस्थायी कनेक्शन लेकर काम चलाना पड़ता है या फिर जितने भी खंभे लगेंगे, उसकी राशि विभाग को देनी होती है। जो काफी महंगा सौदा होता है। ऐसे में भवन मालिक भी बांस-बल्लियों के सहारे ही बिजली कनेक्शन लेकर काम चलाने मजबूर होते हैं। जबकि नियम यह है कि निकाय क्षेत्र में होने पर नगर सरकार को बिजली खंभा लगाना होता है या फिर बिजली विभाग को खंभा लगाना चाहिए मगर दोनों ही जिम्मेदार विभाग इस ओर ध्यान नहीं देते।
प्राचार्य के इस करतूत की जब स्कूली बच्चों ने घर में की शिकायत, तो परिजन के उड़ गए होश, फिर जो हुआ पढि़ए खबर… 400 खंभे की मिली थी मंजूरी
उल्लेखनीय है कि पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान जिला मुख्यालय जांजगीर में बिजली खंभा की जरूरत को देखते हुए खंभा लगाने की मंजूरी दी थी और सर्वे कर स्टीमेंट मांगा था। इसके बाद नपा ने सर्वे कराया, जिस पर 400 खंभे की जरूरत बताते हुए राशि मांग की। मगर उस समय सीमेंट खंभे के हिसाब से करीब 45.46 लाख रुपए खर्च आना बताया गया परन्तु सीमेंट की बजाए लोहे के खंभा लगाना फाइनल किया गया। इसके लिए बिजली विभाग ने करीब 90 लाख रुपए का डिमांड ड्राफ्ट नपा को दिया मगर इतनी राशि शासन से मंजूर नहीं हो पाई और काम लटक गया। इसके बाद तो सरकार भी बदल गई और ठंडे बस्ते में चली गई।
हैरानी वाली बात यह है कि बांस-बल्लियों के सहारे बिजली कनेक्शन होने से हर समय खतरा भी रहता है। तेज हवा या बांस के सड़ जाने से दुर्घटना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर पानी के ऊपर से केबल नहीं खींचने का नियम है मगर बीटीआई पुल से लेकर नहरिया बाबा मंदिर मार्ग में बांस के सहारे ऐसे नजारे देखे जा सकते हैं।