कार्यशाला का उद्घाटन करते पद्मश्री और देशभर में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के प्रणेता पीजीआई चंडीगढ़ के प्रो. दिगंबर बेहरा ने कहा कि टीबी के उन्मूलन में छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और उड़ीसा के मेडिकल कालेजों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। उन्होंने कहा कि गत वर्ष टीबी के लगभग 24 लाख मामले प्रकाश में आए जबकि लगभग चार लाख अभी भी इलाज के लिए नहीं आए हैं। इन रोगियों की पहचान और इलाज भारतीय चिकित्सा प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण सफलता है। यदि चिकित्सक थोड़ी और मेहनत करें तो भारत से टीबी का उन्मूलन संभव है। उन्होंने फेफड़ों के अलावा अन्य टीबी (कुल रोगियों का 20 प्रतिशत) और दवारोधी टीबी (कुल रोगियों का छह प्रतिशत) को एक चुनौती बताते हुए इसके इलाज के लिए मेडिकल कालेजों की मदद लेने का आह्वान किया।एम्स रायपुर के निदेशक प्रो. नितिन एम. नागरकर ने कहा कि एम्स छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर टीबी, मलेरिया और कुपोषण की चुनौती से मुकाबला कर रहा है। डॉ. रघुराम राव, डीएडीजी, स्वास्थ्य निदेशक महानिदेशालय ने कहा कि भारत में वर्ष 2018 में 26.9 लाख टीबी मरीजों की पहचान की गई जो प्रति लाख 199 है और कुल जनसंख्या का लगभग 0.2 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि आसाम, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित नौ राज्यों में कुल टीबी के 65 प्रतिशत रोगी हैं। इसे खत्म करने के लिए मेडिकल कालेजों का सहयोग आवश्यक है।कार्यशाला में स्वास्थ्य शिक्षा निदेशक डॉ. एसएल एडिल, आयोजन सचिव डॉ. अजॉय कुमार बेहरा, उप-निदेशक (प्रशासन) नीरेश शर्मा, चिकित्सा अधीक्षक डॉ. करन पीपरे, डॉ. उज्जवला गायकवाड़ और डॉ. एसके साही उपस्थित रहे।
टीबी का इलाज बड़ी चुनौती स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सचिव निहारिका बारिक सिंह ने कहा कि टीबी का आसान इलाज संभव है, मगर फिर भी यह एक चुनौती है। देशभर में प्रतिवर्ष लगभग 4.80 लाख रोगियों की मृत्य टीबी से होती है। इसे देखते हुए छत्तीसगढ़ ने स्वयं को वर्ष 2023 तक टीबी मुक्त बनाने का महत्वकांक्षी लक्ष्य रखा है।
मरीजों को सामाजिक स्तर पर मिलने वाले उलहने से दिलाएं निजात केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की संयुक्त सचिव डॉ. प्रियंका शुक्ला ने छत्तीसगढ़ की टीबी उन्मूलन में की गई पहल की प्रशंसा करते की। उन्होंने कहा कि टीबी के मरीजों को सामाजिक स्तर पर मिलने वाली उलाहना से निजात दिलाने के लिए पहल की आवश्यकता है। उन्होंने एम्स को टीबी के इलाज के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने और यहां दवारोधी टीबी मरीजों के लिए पृथक वार्ड एवं लैब बनाने का भी सुझाव दिया।