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कृषि विवि ने किया शुगर फ्री धान छत्तीसगढ़ मधुराज-55 का उत्पादन, मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद

locationजांजगीर चंपाPublished: Nov 19, 2019 05:35:33 pm

Submitted by:

Vasudev Yadav

Sugar free paddy: जिले के कृषि विज्ञान केंद्र कैंपस में कृषि वैज्ञानिकों ने 36 प्रकार के सुगंधित चावल की खेती की है। इसमें सबसे खास बात यह हैं कि यह धान शुगर फ्री (Sugar free paddy) है। यानि इसे शुगर के मरीज भी खा सकेंगे।

कृषि विवि ने किया शुगर फ्री धान छत्तीसगढ़ मधुराज-55 का उत्पादन, मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद

कृषि विवि ने किया शुगर फ्री धान छत्तीसगढ़ मधुराज-55 का उत्पादन, मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद

जांजगीर-चांपा. कृषि विवि ने शुगर फ्री धान (Sugar free paddy) का उत्पादन किया है, जो मधुमेह रोगियों के फायदेमंद है। इस धान बीज को जांजगीर स्थित कृषि विज्ञान में ट्रॉयल के लिए लगाया गया। वर्तमान में फसल तैयार हो गई है। केवीके के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जांजगीर-चांपा जिला भी इस धान बीज के लिए अनुकूल है।
उल्लेखनीय है कि इंदिरा गांधी कृषि विवि रायपुर ने इस शुगर फ्री किस्म के धान को तैयार किया है। केवीके के जिला प्रभारी डॉ. केडी महंत ने बताया कि शुगर फ्री इस चावल को छत्तीसगढ़ मधुराज-55 नाम से जाना जाता है। कॉलेज कैंपस में करीब 36 प्रकार के सुंगधित धान के किस्मों की फसल लगाई गई है जिसमें एक शुगर फ्री (Sugar free paddy) छत्तीसगढ़ मधुराज-55 भी शामिल है। छत्तीसगढ़ मधुराज-55 बीज को विवि द्वारा रिसर्च कर तैयार किया गया है। तीनों बीज हाइब्रिड से बेहतर हैं। कम पानी, रोपा व बुवाई दोनों पद्धति से तैयार, बीज का दोबारा उपयोग व बीमारी की संभावना भी कम है। हाईब्रिड में तो अच्छा उत्पादन होता है।
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कोदो के बदले बढिय़ा ऑप्सन
यह धान शुगर के मरीजों के लिए कोदो के बदले बढिय़ा ऑप्शन है। छत्तीसगढ़ मधुराज की किस्म चपटी गुरमटिया सी-843 से तैयार की गई है। इसका दाना मध्यम मोटा व उपज प्रति हेक्टेयर 40 से 45 क्विंटल हैं। मार्केट में बेचें तो करीब 40 से 50 रुपए प्रति किलो की हिसाब से बेची जाएगी। इसे विवि के डॉ. गिरीश चंदेल ने तैयार किया है।

खेती के लिए जिला अनुकूल
केवीके के प्रभारी व मृदा वैज्ञानिक डॉ. केडी महंत ने बताया कि शुगर फ्री चावल एक तरह से सुगंधित चावल की एक किस्म की ही जैसी है। जिले में किसान इसकी आसानी से खेती कर सकते हैं। क्योंकि जिले में अभी भी काफी मात्रा में अन्य सुगंधित किस्मों की खेती किसान करते ही हैं। इसमें खास बात यह है कि रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती।

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