दिनेश ने एनसीसी के इतिहास को लेकर बताया कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासन ने युवा संगठन तैयार करने के बारे में विचार किया ताकि भविष्य में युद्ध के दौरान ऐसे युवाओं की मदद ली जा सके। इसी उद्देश्य से सन 1917 में पहली बार यूसी (यूनिवर्सिटी कोर) की स्थापना की गई। बाद में 1920 में इसका नाम बदल कर यूटीसी (यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कोर) किया गया। द्वितीय विश्व युद्ध में मिली असफलता से सबक लेकर 1942 में इसका नाम फिर से बदलकर यूओटीसी (यूनिवर्सिटी ऑफिसर ट्रेनिंग कोर) किया गया और इसके माध्यम से जुडऩे वाले बच्चों को डिफेंस की ट्रेनिंग देना शुरू किया गया।
#Topic Of The Day- सर्व पिछड़ा समाज हो रहा उपेक्षित : पटेल इसके बाद हृदयनाथ कुंजरू की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कैडेट कोर समिति बनाई गई। इसके तहत 16 जुलाई 1948 को एनसीसी की स्थापना की गई। 1950 में आर्मी के साथ-साथ इससे एयर विंग और 1952 में नौ सेना को भी जोड़ दिया गया। एनसीसी के माध्यम से अब बच्चों को हथियार प्रशिक्षण, मैप रीडिंग, फील्ड क्राफ्ट व बेटर क्राफ्ट सहित अनुशासन व आत्म रक्षा की ट्रेनिंग दी जाती है। एनसीसी के माध्यम से सेना में जाने के इच्छुक बच्चे एक सैनिक की दिनचर्या व उसकी एक्टिविटी के बारे पहले से परिचित हो जाते हैं। शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक एक में 1966 से संचालित एनसीसी इकाई से निकले 1600 बच्चे सेना व पुलिस बल में अपनी सेवा दे रहे हैं।
एनसीसी के उद्देश्य
देश के युवाओं में एकता अनुशासन, साहचर्य, आत्मरक्षा, नेतृत्व क्षमता के विकास के साथ-साथ एक ऐसा मानव संसाधन तैयार करना जो देश की रक्षा के लिए प्राण त्यागने को तैयार रहे। इसके अलावा इसका उद्देश्य शसस्त्र सेना में आजीविका बनाने के लिए भी प्रेरित करना है।
एनसीसी सर्टिफिकेट के लाभ
दिनेश ने बताया कि इंडियन मिलिट्री एकेडमी देहरादून में 64 सीटें एनसीसीसी सर्टिफिकेट धारकों के लिए रिजर्व हैं। इसका चयन यूपीएससी के माध्यम से होता है। इसके साथ ही ओटीए चेन्नई में 100 सीटें एनसीसी कैडेट के लिए आरक्षित हैं। वायु सेना में 10 प्रतिशत व नौ सेना में 6 प्रतिशत रिक्तियां यूपीएससी एवं एसएसबी के माध्यम से एनसीसी कैडेट्स का चयन किया जाता है। साथ ही साथ राज्य पुलिस बल, अर्ध सैनिक बल, दूर संचार विभाग सहित कई शासकीय सेवाओं में भर्ती के लिए एनसीसी कैडेट्स को बोनस अंक का लाभ दिया जाता है।