टीबी की जांच और रोकथाम के लिए जिले में बारह माइक्रोस्कोपिक सेंटर बनाए गए हैं। इन केंद्रों में जांच के बाद मरीज के टीबी से ग्रसित मरीज को पहचान होते ही उपचार शुरू किया जाता है। लगातार कम से कम छह माह तक दवा का कोर्स कराने के साथ जरूरत पडऩे पर बाहर रेफर किया जा रहा है।
किस तरह फैलता है टीबी
माइकोबेक्टीरियम ट्यूबरक्यूलोसिस नाम के जीवाणु से टीबी की बीमारी होती है। टीबी शरीर के किसी भी भाग जैसे फेफड़े, आंत, मस्तिष्क, झिल्ली, हड्डिया एवं जोड़ गिल्ठियां, जननांग, चमड़ी व अन्य अंग को प्रभावित कर सकता है। एक फेफड़े का क्षय रोगी खांसता या छींकता है तो ये जीवाणु छोटे-छोटे कणों के रूप में हवा में फैल जाते हैं। ये कण जब सांस के द्वारा किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करते हैं, तो वह क्षय रोग से संक्रमित हो जाता है। स्पूटम पाजीटिव फेफड़ों का क्षय रोग सबसे अधिक सक्रमण फैलाने वाला है।
दो प्रकार की होती है टीबी
जिला क्षय नियंत्रण कोआर्डिनेटर सोमेश तिवारी ने बताया कि क्षय एक संक्रामक बीमारी है तथा यह दो प्रकार की होती है। पल्मोनरी जो मनुष्य के फेफड़े में होती है और दूसरी एक्स्ट्रा पल्मोनरी जो मनुष्य के किसी भी अंग में हो सकती है। मनुष्य के फेफड़े में होने वाला क्षय ही संक्रामक होता है। यह मरीज के थूकने तथा छींकने के अलावा उसका जूठन खाने से भी फैलता है। शरीर के अन्य अंगों में होने वाली एक्स्ट्रा पल्मोनरी आनुवंशिक प्रकार की होती है इससे प्रभावित मरीज को शराब, गांजा, बीड़ी, धूल आदि से बचना चाहिए। एक अनुमान के मुताबिक पल्मोनरी का मरीज साल भर में 10-12 व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है।
यहां है जांच की सुविधा
जिले में जांजगीर, अकलतरा, सक्ती और डभरा 4 टीबी यूनिट बनाए गए हैं। वहीं जिला अस्पताल जांजगीर, नवागढ़, पामगढ़, अकलतरा, बलौदा, पहरिया, चांपा, बम्हनीडीह, जैजैपुर, हसौद, सक्ती, कुरदा(सक्ती), मालखरौदा, डभरा एवं चंद्रपुर के स्वास्थ्य केंद्रों में खखार जांच व दवा वितरण निशुल्क किया जाता है।
ये हैं लक्षण
यदि किसी व्यक्ति को लगातार दो सप्ताह तक खांसी आ रही हो, शाम के समय बुखार आता हो और लगातार वजन कम हो रहा हो, साथ ही खांसी में बलगम के साथ यदि खून भी जाता हो, तो ऐसे लोगों को जांच अवश्य कराना चाहिए।