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कलिया हाईस्कूल के खुले हो गए 12 साल, पर आज भी नहीं बना स्कूल का अपना भवन

locationजशपुर नगरPublished: Jul 11, 2019 12:15:29 pm

Submitted by:

Murari Soni

चुनाव बीतने के बाद क्षेत्र की समस्या जानने नहीं आते जनप्रतिनिधि और अधिकारी

12 years of Kaliya Highschool opened, but still not made its own schoo

कलिया हाईस्कूल के खुले हो गए 12 साल, पर आज भी नहीं बना स्कूल का अपना भवन

साहीडांड़. बगीचा विकास खंड का ग्राम पंचायत कलिया चारों तरफ से बादलखोल अभयारण्य के जंगलों से घिरा हुआ हैं। इस क्षेत्र में अधिकतर पहाड़ी कोरवा और आदिवासी सम्प्रदाय के लोग निवास करते हैं, जो आजादी के इतने सालों बाद भी कई सुविधाओं के अभाव में आज भी जूझ रहा है। यहां आज भी सडक़, बिजली, स्वास्थ्य, पानी सहित शिक्षा की स्थिति बद से बदतर हालात में है। अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए यह आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र कई बार सुखिऱ्यों में भी रहा है। कलिया के ग्रामीणों ने यहां की बदहाल शिक्षा व्यवस्था का जिक्र करते हुए बताया कि कलिया में हाईस्कूल 2007 में खुला है। क्षेत्र में हाईस्कूल खुलने की सूचना सुन क्षेत्र के ग्रामीणों, स्कूली बच्चों और उनके अभिभावकों में ख़ुशी थी। कि गांव के बच्चों को गांव में ही हाईस्कूल तक पढऩे की सुविधा मिल जाएगी, लेकिन 12 साल बीत जाने के बाद भी गांव के हाईस्कूल को अपना भवन तक नसीब नहीं हुआ। आज भी हाईस्कूल के ९वीं, १०वीं दो कक्षाओं के सभी बच्चों की एक साथ पढ़ाई मिडिल स्कूल के अतिरिक्त कक्ष में संचालित है। विभाग का भी ध्यान इस ओर नही गया। स्कूल के शिक्षकों ने बताया कि वर्तमान में हाईस्कूल में ५० बच्चों की दर्ज संख्या हैै और स्कूल में प्रवेश जारी है।

बरसात में हो पूरा गांव हो जाता है टापू: कलिया, बुटंगा, गैलूंगा सहित कुछ आश्रित ग्राम है जहां आज भी आवागमन की सुविधा का अभाव है। गांव में बिजली नही है, स्वस्थ्य सुविधा भी ठीक नही है। आज भी मूलभूत आवश्यकताओं से यह क्षेत्र पिछड़ा हुआ है। बरसात आते ही इन पंचायतों का विकास खंड और जिला से सम्पर्क टूट जाता है। क्षेत्र के ग्रामीण बताते हैं कि यह गांव विकास खंड से 25 और जिले से 80 किलोमीटर की दूरी पर है, पर बरसात में यह दूरी दुगुनी से तिगुनी तक हो जाता है। विकास खंड और जिला जाने के लिए जंगलों में चारों तरफ छोटे छोटे नदी नाले हैं, जिनको पार करके ही विकास खंड, जिला या कुछ बच्चे पढ़ाई करने जाते हैं। बरसात में जान जोखिम में डालकर बच्चे अपने भविष्य का निर्माण करते हैं। जंगलों के मार्ग कच्चे हंै, जहां बरसात के दिनों में पैदल चलना दूभर हो जाता है।
क्षेत्र में नही पहुंचते बड़े नेता या बड़े अधिकारी : ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव से पहले इस भोले भाले आदिवासी पिछड़े क्षेत्र में मंडल, जिला, प्रदेश सहित अन्य राज्यों के नेता भी इस क्षेत्र में हेलीकॉप्टर से अपनी उपस्थिति दे देते हैं और बड़े बड़े वादे कर गरीब आदिवासियों को बरगला कर चले जाते हैं, लेकिन यहां की मूल समस्या जस की तस बनी हुई है।
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