जशपुरनगर. जशपुर को आक्सीजोन बनाने का सपना एक सपना ही बनकर रह जाएगा। शासन प्रशासन के द्वारा हर वर्ष पूरे तामझाम के साथ बड़ी संख्या में वृक्षारोपण कर शहर को हरा भरा रखने का संदेश दिया दिया जाता है। लेकिन यह संदेश सिर्फ वृक्षारोपण करने तक ही रहता है। एक बार बड़ी संख्या में वृक्षारोपण कर दिए जाने के बाद उस ओर फिर किसी का
ध्यान ही नहीं जाता कि उनके द्वारा किया गया वृक्षारोपण के बाद उन पौधों की स्थिति क्या है, लगाए गए पौधे हरे भरे हो रहे हैं या फिर मवेशियों के निवाला बन रहे है इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। वृक्षारोपण का कार्यक्रम एक बार सुॢखयां बन जाती है उसके बाद उस स्थान से लगाए गए पौधे ही गायब हो जाते हैं उन पौधों को या तो मवेशी अपना निवाला बना लेते हैं या फिर देखरेख के आभाव में सूख कर पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं।
जिला मुख्यालय में प्रशासन के द्वारा एनएच ४३ के किनारे बड़े तामझाम और प्रचार प्रसार के साथ शहर के दो-तीन स्थानों को चिंहित कर उसे शहर के नजदीक में आक्सीजोन के रूप में विकसित करने के लिए खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.
रमन सिंह के हाथों से वृक्षारोपण करागया गया था। लेकिन अब उन दोनो स्थानों में प्रशासन के देखरेख के आभाव में सिर्फ खरपतवार ही बचे हैं। इसके साथ ही आक्सीजोन के रुप में तैयार किए गए जंगल अब आगजनी का शिकार भी हो चुका है। आग लगने के कारण यहां छोटे पौधे आग की चपेट में आकर पूरी तरह से नष्ट हो गए है। जंगल और पर्यावरण को बचाने के लिए केंद्र और राज्य दोनों ही शासन की ओर से बातें तो बहुत की जाती है। पर इन नाकाफी कोशिशों की जमीनी हकीकत कुछ और है। यहां तक कि वन विभाग का स्मृति वन भी अवैध कटाई से बच नहीं पाया। पहले से ही सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं होने के कारण यह वन उजाड़ हो चुका है। अब यह स्मृति वन मवेशियों का चारागाह बन चुका है। इससे विभाग द्वारा पर्यावरण संरक्षण को लेकर किए जा रहे प्रयासों पर भी सवाल उठने लगे हैं। करीब चार साल पहले शहर से लगे डोड़काचौरा में वन विभाग द्वारा स्मृति वन बनाया गया था। जहां लोगों ने अपने पूर्वजों की याद में पौधे लगाए थे। जिसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी वन विभाग की थी। पौधे लगने के बाद एवं पहले से जो यहां पेड़ थे,उसकी धड़ल्ले से अवैध कटाई की गई। जिस पर विभाग ने कोई ध्यान नहीं दिया। यहां तक कि वन सुरक्षा समिति और बीट गार्ड भी अपनी जिम्मेदारी सही तरीके से नहीं निभा रहे हैं। जिससे शहर से सटे स्मृति वन में अब केवल ठूंठ नजर आ रहे हैं। अब हालत यह है कि यह स्मृति वन मवेशियों का चारागाह बन चुका है। वन विभाग की निष्क्रियता का आलम यह है कि जंगल की निगरानी के लिए वन विभाग की ओर से तैनात किए गए रेंजर और बीट गार्ड को भी मामले की जानकारी होने पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। घने जंगलों के भीतर अवैध कटाई का सिलसिला पहले से ही जारी है। एक तरफ वनों को संरक्षित करने के लिए पौधे लगाने की पहल की जा रही है। वहीं शहर से लगे जंगल के पेड़ों को काटा जा रहा है। जशपुर से रांची जाने वाले मार्ग में जशपुर के स्वागत गेट एनएच 43 के पास घेरा पहाड़, टेढ़ा पहाड़, स्मृति वन सहित बरटोली और सारूडीह क्षेत्र के जंगल में लगे साल जैसे पेड़ों को ग्रामीण काट चुके हैं।
वनों को उजड़ता देख रहे हैं अधिकारी :वनों की सुरक्षा के लिए तैनात रेंजर और बीट गार्ड पर इस मामले को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। रेंजर और बीट गार्ड की मौजूदगी होने के बावजूद शहरी क्षेत्रों के नजदीक के जंगलों में पेड़ों की जगह ठूंठ क्यों है, लकड़ी तस्कर इमारती लकड़ी देने वाले पेड़ों को निशाना बनाकर अंधाधूंध कट चुके हैं। वन सुरक्षा में तैनात वन अमला को इसकी जानकारी होने के बावजूद अनजान बना हुआ है। वनोपज के बाद भी लकड़ी का कारोबार गरीब ग्रामीणों को
रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से शासन स्तर पर वनोपज को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। वनोपज का लाभ लेकर जीविकोपार्जन करने की सीख भी ग्रामीणों को बतौर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके बाद भी अधिकांश गरीब ग्रामीण आज भी वनों को काटकर लकड़ी का कारोबार कर रहे हैं। इमारती लकडिय़ों के साथ ही जलाऊ लकडियां बाजार में लाकर बेचने का सिलसिला अब भी जारी है।
पहले मवेशियों ने अब आग ने पहुंचाया नुकसान : शहर को आक्सीजोन बनाने के लिए शहर के एनएच ४३ के किनारे एक बड़े हिस्से को वन विभाग के द्वारा घेर कर वृहद पैमाने में वहां वृक्षारोपण कर उसे आक्सीजोन के रुप में तैयार करने की पहल की थी। इस स्थान में मुख्यमंत्री की उपस्थिति में बड़े पैमाने में वृक्षारोपण किया गया था। उसके बाद हर वर्ष इस स्थान में जिला प्रशासन के द्वारा वृक्षारोपण का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। लेकिन इस स्थान में उचित रखरखाव नहीं होने के कारण इस स्थान को मवेशियों ने अपना अड्डा बना चारागाह बना लिया था, जिससे वहां की हरियाली पूरी तरह से नष्ट हो चुकी थी। वहीं विगत दिनों सड़क के किनारे किसी के द्वारा वहां के जंगलों में आग लगा दिए जाने के बाद अब आग की चपेट में आ जाने से स्मृति वन की हरियाली खत्म हो गई है।