scriptआने वाले गाद और रेत से भर गया बांध, नहर भी बुरी तरह से हो गई है बदहाल | Incoming silt and sand-filled dam, the canal is badly damaged. | Patrika News

आने वाले गाद और रेत से भर गया बांध, नहर भी बुरी तरह से हो गई है बदहाल

locationजशपुर नगरPublished: Feb 16, 2018 08:08:50 am

Submitted by:

Amil Shrivas

नहर की उपेक्षा की बड़ी कीमत किसानों के साथ शहरवासियों को भी पड़ा रहा है चुकाना

Nahar nirmaan
जशपुरनगर. जिला मुख्यालय जशपुर के समीप स्थित पनचक्की में निर्मित तिवारी नहर परियोजना उपेक्षित होकर बदहाल हो चुका है। जर्जर हो चुके नहर की शाखाओं के किनारे स्थित खेत के मालिक सालों से पानी के अभाव में रबी फसल नहीं ले पा रहे हैं। नहर की इस उपेक्षा की बड़ी कीमत किसानों के साथ शहरवासियों को भी चुकानी पड़ रही है।
नहर में पानी के ना रहने से जलस्तर तेजी से गिर रहा है। कुंआ और तालाब जैसे पारंपरिक जलस्त्रोत अभी से सूखने लगे है। नहरों की देखभाल को लेकर ना तो सिंचाई विभाग के अधिकारी जागरूक है और ना ही पंचायत स्तर पर गठित नहर समिति सक्रिय है। नहरों की मरम्मत को लेकर अधिकारियों से गुहार लगाकर थक चुके किसान अब अपने खेतों के फसल को बचाने के लिए स्वयं नहरों की सफाई करने में जुटे हुए है। सिंचाई विभाग द्वारा तिवारी नाला व्यपवर्तन योजना का निर्माण 80 के दशक में किया गया था। योजना का उद्देश्य जशपुर के सारूडीह, बाधरकोना, तपकरा के साथ भागलपुर, बरटोली के किसानों को रबी के फसल के लिए सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराना था। इस व्यपवर्तन योजना से सिंचाई के लिए नहर की दो शाखाओं का निर्माण किया गया है। नहर सारूडीह मोड़ के पास से दो भागों में विभक्त होती है। इस नहर की एक शाखा बाई ओर से बाधरकोना तपकरा होते हुए जशपुर के देउलबंध तालाब की ओर से नगर के बीच बहती है। दूसरी शाखा सीधी निकलकर बरटोलीए भागलपुरए बांकीटोली होते हुए बांकी नदी में मिलती है। रबी फसल के लिए उत्पादन के लिए तिवारी व्यपवर्तन योजना को लाइफ लाइन कहा जा सकता है। इस नहर से मिलने वाले पानी से जिला मुख्यालय के आसपास बारहों माह किसानों के खेतों में फसल लहलहाया करती थी। धान और गेंहू के साथ सब्जी की भरपूर पैदावार किसान लिया करते थे।
जिले में अभी भी ठंड पड़ रही है इसके बावजूद भी कई स्टाप डेमों में पानी का जलस्तर आधा हो चूका है। जिले के सभी जलाशयों की स्थिती देखी जाए तो वर्तमान में जल भराव की स्थिती ६६ प्रतिशत पंहुच गई है। वहीं कई जलाशय में मात्र ५० प्रतिशत पानी ही बचा है, जो गर्मी शुरू होने के पहले ही सूख जाएंगे और उस क्षेत्र के लोगों को निस्तारी जल की समस्या उत्पन्न होनी शुरू हो जाएगी। वहीं प्रशासन के द्वारा जिले में जल बचाने के लिए कई प्रयास किए जा रहें हैं। लेकिन प्रशासन के सारे प्रयास विफल होते हुए नजर आ रहे हैं। जिसका नतिजा यह हो रहा है कि ठंड के दिनों में ही जिले के जलाशयों में जल स्तर कम होने लगा है। इससे सहज की अंदाजा लगाया जा सकता है कि गर्मी के दिनों में पानी को लेकर जिले की स्थिती क्या होगी और प्रशासन इस समस्या से कैसे निपट पाएगा।
जिले में जल संसाधन विभाग के द्वारा किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी देने के लिए १८ डेमों का निर्माण कराया गया है और इन डेमों में पानी को स्टोर किया जाता है। विभाग के द्वारा जिले में कई जलाशयों का निर्माण कराया गया है। जलाशय के द्वारा किसानों को सिंचाई सुविधा प्रदान करने के लिए जलाशय का निर्माण किया गया है। लेकिन विभाग की अनदेखी के कारण आधे जलाशयों की स्थिति जजर्र हो गई और अभी से ही जलाशयों में पानी कम होना शुरू हो चुका है।
जर्जर जलाशयों पर विभाग नहीं दे रहा ध्यान
किसानों की साग-सब्जियों की फसल के लिए सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से फरसाबहार ब्लॉक के कोनपारा क्षेत्र में कोकिया व्यपर्वतन योजना एवं कटंगमुड़ा डेम का निर्माण किया गया था। पर करीब 13 सालों से इस डेम का गेट टूट चुका है। वहीं नहरें भी टूटी फुटी हुई हैं। जिसकी मरम्मत विभाग द्वारा नहीं कराई गई है। इसके चलते चार गांवों के 5 सौ से अधिक किसान अब सिंचाई के अभाव में साग सब्जियों की फसल नहीं ले पा रहे हैं। क्षेत्र के किसानों का कहना है कि 30 वर्षों तक यह डेम ठीक रहा। पर 2003-04 से तत्कालिन अधिकारियों के अनदेखी का शिकार होने लगा। जिससे डेमों के गेट टू गए और नहर भी जर्जर हो गई। इसी तरह पत्थलगांव विकासखंड में 9 साल पहले बन कर तैयार तमता जलाशय योजना का पानी आज तक अंतिम छोर तक नहीं पहुंच पाने से चन्दागढ़, भैसामुड़ा और कुड़केलखजरी गांव के किसानों को खरीफ की सिंचाई के लिए एक बुंद भी पानी नहीं मिल पा रहा है। तमता जलाशय की सिंचाई नहरों की देख रेख नहीं होने से भी प्रारंभिक क्षेत्र के किसान अपने तलाबों से बेतहास पानी लेकर उसे व्यर्थ बहा देते हैं। तमता जलाशय की नहर में चंदागढ़ के समीप रॉक कटिंग का काम 9 साल के बाद भी अधूरा होने से कुड़केलखजरी गांव में तो इस नहर का अस्तित्व ही समाप्त होने की कगार में जा पहुंचा है।
निस्तारी जल की होने लगी समस्या
जिले में कभी पानी की समस्या नहीं रही पर लगातार जंगलो के घटने के कारण बीते कुछ सालों से समस्या हो रही है। जिले से अभी पूरी तरह से ठंड गई नहीं और जलाशय सूखने लगे हैं। सिंचाई विभाग द्वारा बनाए गए नीमगांव डेम और सोगड़ा डेम की स्थिति वर्तमान में यह हो गई कि यहां मात्र ५० प्रतिशत ही पानी का भराव बचा हुआ है और आधा हिस्सा अभी से ही सूख गया है। इन दोनो डेमों की स्थिति यह है कि जिले में गर्मी के शुरू होने के साथ ही यहां पानी ही नहीं बचेगा और पूरा डेम एक मैदान की तरह नजर आने लगेगा। इसके साथ ही जिले के सभी जलाशयों में पानी का स्तर नीचे गिर चुका है। इन जलाशयों की सफाई और पानी बचाने पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह पूरी तरह से सूख जाएंगे। शहर में अभी से ही निस्तारी जल की समस्या शुरू हो गई है।

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