scriptजिस मुद्दे की वजह से यह पूरा इलाका देशभर में सुर्खियों में था, लोकसभा चुनाव में चर्चा तक नहीं | Lok Sabha CG 2019: Special report on Raigarh seat, know history | Patrika News

जिस मुद्दे की वजह से यह पूरा इलाका देशभर में सुर्खियों में था, लोकसभा चुनाव में चर्चा तक नहीं

locationजशपुर नगरPublished: Apr 22, 2019 06:54:12 pm

Submitted by:

Ashish Gupta

पिछले साल जशपुर की ग्राम पंचायत बछरांव व आसपास के गांव मांदरटंगना, बेदोपानी, कुसुमटेकरी में पत्थलगड़ी ने पूरे देश में हलचल मचा दी थी। लेकिन अब यह कोई मुद्दा नहीं है। चुनावी माहौल में इस पर कोई चर्चा नहीं होती।

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राजीव द्विवेदी/जशपुर. पिछले साल जशपुर की ग्राम पंचायत बछरांव व आसपास के गांव मांदरटंगना, बेदोपानी, कुसुमटेकरी में पत्थलगड़ी ने पूरे देश में हलचल मचा दी थी। गांव वालों ने बाहर से किसी के यहां आने पर पाबंदी लगा दी थी। कोई बाहरी व्यक्ति दिखा तो तुरंत सीटी बजने लगती थी और थोड़ी देर में ही गांव वाले इकट्ठे हो जाते थे। रजिस्टर में नाम, पता और आने का कारण दर्ज कराने के बाद गांव वालों की अनुमति पर ही प्रवेश अन्यथा नहीं।
लेकिन अब यह सब बीते दिनों की बात हो गई है। गांव वालों का कहना है कि बाहरी लोगों ने गांव वालों को बरगलाया। उसमें कुछ नेता भी शामिल थे। लेकिन अब यह कोई मुद्दा नहीं है। चुनावी माहौल में इस पर कोई चर्चा नहीं होती। गांव में आदिवासियों सहित हर वर्ग के लोग निवास करते हैं।
raigarh lok sabha seat
जशपुर से लगभग 90 किलोमीटर दूर जंगली रास्ते से होते हुए ग्राम पंचायत बछरांव पहुंचे। मुख्य चौराहे पर एक बड़ा शिलालेख दिखा, उस पर संविधान की धाराओं और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का अपना विश्लेषण है। पत्थर के पास पेड़ों की छांव में कुछ लोग बातचीत करते दिखे।
सामने एक किराना दुकान में लोग सामान खरीद रहे थे। कुछ लोग वहां एक कमरे में लगे महुए के ढेर से महुआ तौला रहे थे। इनसे पत्थलगड़ी पर बात करने पर हंसते हुए कहते हैं कि आप लोग इसे देखने आए हो, लेकिन अब यह कुछ नहीं है। कुछ बाहरी लोगों ने बरगलाने की कोशिश की थी। गांव में पहले भी शांति थी, अब भी है।

परंपरागत तरीके से वोट, कोई बड़ा मुद्दा नहीं
गांव के लोगों में भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के समर्थक हैं। अन्य गांवों की तरह यहां भी बिजली, पानी, सड़क आम समस्या है। लोगों की उम्मीद है कि उनको निराश्रित या वृद्धावस्था पेंशन मिले, गांव में ही काम मिले। महुआ का सीजन है, लोगों ने बड़ी मात्रा में महुआ इकट्ठा किया है। जगह-जगह ढेर लगाकर महुआ बेच रहे हैं।

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उमर नई होए हे, अभी तो जावनेच हौं
बछरांव की दुकान के बाहर कुछ लोग बैठे थे। अपने पति बुधु के साथ आई फुलमनी से पूछा कि का ला वोट देबे दाई, उसने सहजता से खिलखिलाते हुए आदिवासी बोली में कहा- जे के बताइहे देहला देबो। फिर खुद ही वह बताने लगीं- बुढ़ापा के पेंसन तो नइ मिलत हे। क्यों नहीं मिलती? इस सवाल पर पोपले मुंह से हंसी बिखेरते फुलमनी कहती है- ओ मन कहिथे अभी तो उमर नई होए हे, जवानेज (जवान) हौं अभी। उसकी इस बात पर सभी हंस पड़ते हैं, फिर बताते हैं कि कुछ लोगों को पेंशन मिल रही है लेकिन कुछ के नाम नहीं जोड़े गए हैं।

जीत के बाद नहीं दिखते
मरियानिस एक्का, एडवर्ड कुजूर, जगन्नाथ बताते हैं कि यहां बिजली, पानी की समस्या है। कुछ गांवों की सड़क भी खराब है। अस्पताल है लेकिन दवा नहीं मिलती। जीत के बाद ज्यादातर नेता गांव की सुध नहीं लेते। गांव में कोई पोस्टर बैनर नहीं लगा था। सरपंच बरतिलियुस खेस कहते हैं कि अब किसी के आने-जाने पर रोक नहीं है। सब अच्छा चल रहा है।

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