परंपरागत तरीके से वोट, कोई बड़ा मुद्दा नहीं
गांव के लोगों में भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के समर्थक हैं। अन्य गांवों की तरह यहां भी बिजली, पानी, सड़क आम समस्या है। लोगों की उम्मीद है कि उनको निराश्रित या वृद्धावस्था पेंशन मिले, गांव में ही काम मिले। महुआ का सीजन है, लोगों ने बड़ी मात्रा में महुआ इकट्ठा किया है। जगह-जगह ढेर लगाकर महुआ बेच रहे हैं।
उमर नई होए हे, अभी तो जावनेच हौं
बछरांव की दुकान के बाहर कुछ लोग बैठे थे। अपने पति बुधु के साथ आई फुलमनी से पूछा कि का ला वोट देबे दाई, उसने सहजता से खिलखिलाते हुए आदिवासी बोली में कहा- जे के बताइहे देहला देबो। फिर खुद ही वह बताने लगीं- बुढ़ापा के पेंसन तो नइ मिलत हे। क्यों नहीं मिलती? इस सवाल पर पोपले मुंह से हंसी बिखेरते फुलमनी कहती है- ओ मन कहिथे अभी तो उमर नई होए हे, जवानेज (जवान) हौं अभी। उसकी इस बात पर सभी हंस पड़ते हैं, फिर बताते हैं कि कुछ लोगों को पेंशन मिल रही है लेकिन कुछ के नाम नहीं जोड़े गए हैं।
जीत के बाद नहीं दिखते
मरियानिस एक्का, एडवर्ड कुजूर, जगन्नाथ बताते हैं कि यहां बिजली, पानी की समस्या है। कुछ गांवों की सड़क भी खराब है। अस्पताल है लेकिन दवा नहीं मिलती। जीत के बाद ज्यादातर नेता गांव की सुध नहीं लेते। गांव में कोई पोस्टर बैनर नहीं लगा था। सरपंच बरतिलियुस खेस कहते हैं कि अब किसी के आने-जाने पर रोक नहीं है। सब अच्छा चल रहा है।