बुराई पर अच्छाई की जीत की है मान्यता : पं. मनोज रमाकांत मिश्रा ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार सतयुग में हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को नारायण नाम लेने से रोकना चाहा। पर भक्त प्रह्लाद नहीं माने। अंत में हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद की हत्या करने की ठान ली। उसकी बहन होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप ने होलिका के साथ मिलकर उसे आग से जलाने की योजना बनाई। प्रह्लाद को गोद में लेकर होलिका लकड़ी की चिता में बैठ गई। पर भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को अग्रि ने छुआ तक नहीं, बल्कि होलिका ही जलकर भस्म हो गई। तब से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के दूसरे दिन लोग उत्साहपूर्वक एक-दूसरे को रंग, गुलाल लगाकर और गले मिलकर बधाई देते हैं। इस दिन राग व द्वेष भूलकर दुश्मन को भी गले लगाया जाता है।