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चिन्मयानंद की गिरफ्तारी से समर्थकों में मायूसी

locationजौनपुरPublished: Sep 20, 2019 11:45:08 am

Submitted by:

sarveshwari Mishra

पीड़िता ने साफ कहा था कि चिन्मयानंद पर कार्रवाई नहीं हुई तो वो आत्महत्या कर लेगी

Chinmayanand

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जौनपुर. शाहजहांपुर में कानून की छात्रा से रेप के आरोप में फंसे चिन्मयानंद को आखिरकार एसआइटी ने गिरफ्तार कर लिया। उनकी गिरफ्तारी की खबर जौनपुर पहुंची तो समर्थकों में मायूसी छा गई। चट्टी चौराहों पर चर्चा तेज़ हो गई। उनकी राजनीतिक हनक और कार्रवाई को लेकर भी मिली जुली प्रतिक्रिया रही।

दरअसल, पीड़िता ने साफ कहा था कि चिन्मयानंद पर कार्रवाई नहीं हुई तो वो आत्महत्या कर लेगी। उसने ये भी आरोप लगाया था कि यूपी सरकार स्वामी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही। उनका लगातार बचाव कर रही है। दरअसल पिछले दिनों छात्रा ने मीडिया के सामने आकर इस मामले में अपनी बात रखी थी। इसके बाद छात्रा की मेडिकल जांच कराई गई, लेकिन चिन्मयानंद पर दुष्कर्म की धारा नहीं बढ़ी। कोर्ट में छात्रा का कलमबंद बयान भी हुआ।

ये है चिन्मयानंद का राजनीतिक सफर
बनारस से महज 56 किलोमीटर की दूरी पर बसे जौनपुर जिले की मछलीशहर सीट 1998 में भाजपा ने चिन्मयानंद को मैदान में उतारा। स्वामी ने सपा के हरिवंश सिंह को बड़े अंतर से चुनाव हरा दिया।

केन्द्र की सरकार गिर जाने से 1999 में फिर देश में आम चुनाव हुए। स्वामी को अब जौनपुर सदर सीट से भाजपा ने प्रत्याशी बना दिया। अपने तेवर और कलेवर के दम पर स्वामी ने करिश्मा करते सपा के पारस नाथ यादव को चुनाव हरा दिया। केन्द्र में एनडीए की सरकार बनी प्रधानंमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को चुना गया। स्वामी चिन्मयानंद के सिर केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री का ताज सजा।
केन्द्र में पांच साल की सरकार और बड़ा ओहदा मिल जाने से स्वामी ने जिले में खूब काम किये। मुंबई-दिल्ली समेत कई शहरों के लिए ट्रेनों के साथ ही जिला अस्पताल का कायाकल्प कराया। सड़क बिजली पानी और स्कूलों के लिए भी चिन्मयानंद ने खूब काम किये। यहीं से उनके करीबियों की संख्य़ा तेजी से बढ़ गई।
सैकड़ों नेताओं को स्वामी ने अपने करीब किया। शहर में चिन्मयानंद होते थे इनके करीबी भाजपा नेता पूरी ताकत लगाकर स्वामी से जुड़े किसी भी कार्यक्रम को बड़ा रूप देते। जहां कार्यक्रम होता वहां स्वामी के पैर छूने वाले ही एक दो घंटें तक कतार में रहते। पांच साल में जौनपुर सदर क्षेत्र का शायद ही कोई गांव बचा हो जहां स्वामी ने अपने एक-दो समर्थक न बनाये हों। इन्ही समर्थकों के इशारे पर ही लोगों का काम काज भी किया जाता था। स्वामी इन समर्थकों की नजर मे देवता के समान थे।
2004 में सदर सीट से स्वामी को हार मिली। धीरे-धीरे राजनीति समापन की तरफ जाने लगी। 2014 में भी चुनाव लड़ने के लिए जिद की पर पार्टी ने टिकट देने से इनकार कर दिया।
BY-Javed Ahmed

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