अशोक मिश्रा पत्नी उर्मिला मिश्रा, बेटे नीरज मिश्रा, धीरज मिश्रा व उसकी पत्नी कविता मिश्रा और 4 वर्षीय बेटी स्वाती मिश्रा के साथ मुंबई में रह कर मामूली नौकरी करते थे। एक बेटा पंकज गांव ही रहता है। मुंबई में उर्मिला की तबीयत खराब हुई तो वहां महंगा उपचार नहीं करा सके और गांव लेकर चले आए। यहां उपचार शुरू हुआ लेकिन बीते 28 अप्रैल को उसकी मौत हो गई। अभी रोता-बिलखता परिवार उनका अंतिम संस्कार करके लौटा ही था कि कविता की भी तबीयत खराब हो गई। गरीबी में जी रहे परिवार ने किसी तरह उपचार शुरू कराया लेकिन 4 मई को उसकी भी मौत हो गई।
दो मौत से सकते में आया परिवार जब तक कुछ समझ पाता अशोक, धीरज, नीरज और स्वाती की भी हालत बिगड़ गई। गांव के लोगों ने चंदा लगा कर सभी को बीएचयू भेजा। वहां जांच में पता चला कि सभी ड्राप्सी रोग से पीड़ित हैं जो मिलावटी खाद्य तेल के प्रयोग से होता है। पहले ही दो के अंतिम संस्कार और इलाज में हुए खर्च से गरीब ब्राह्मण परिवार टूट चुका था। दवाओं के टोटे हुए तो गांव के लोगों ने एक दूसरे से रूपये मांग कर जुटाने शुरू कर दिए। वहां उपचार के बाद चिकित्सकों ने चारों को स्वस्थ बता कर 10 मई को डिस्चार्ज कर दिया। यहां आने के बाद 14 मई को अचानक धीरज की हालत फिर से बिगड़ गई। परिजन अस्पताल लेकर निकले लेकिन रास्ते में उसकी मौत हो गई।
तीन मौत से करमहीं तो क्या आसपास के गांव में भी कोहराम मच गया। लोग दहशत और अफवाहों में जीने लगे। कुछ दिन सब ठीक-ठाक चला तो ग्रामीणों ने राहत की सांस ली। तभी बुधवार को जिला अस्पताल से डिस्चार्ज होकर आए नीरज मिश्रा 28 की हालत गुरूवार को बिगड़ गई। ग्रामीणों की मदद से वाहन द्वारा उसे जिला अस्पताल ले जाया जा रहा था कि रास्ते में उसने भी दम तोड़ दिया। दाने-दाने को मोहताज हो चुके अशोक मिश्र के बड़े बेटे पंकज ने ग्रामीणों से आर्थिक सहयोग लेकर रामघाट पर भाई का अंतिम संस्कार कर दिया। अशोक मिश्र तो अब भी अचेतावस्था में पड़े हैं। पंकज रो-रो कर पागल हो गया है। उसे न तो सरकार से मदद मिल रही और न ही घर में फूटी कौड़ी है जिससे तिल-तिल कर मर रहे बूढ़े बाप का उपचार करा सके।
जनप्रतिनिधियों ने भी नहीं ली कोई खबर जौनपुर में 9 विधायक हैं, इनमें से एक सदर विधायक गिरीशचंद्र यादव राज्यमंत्री हैं। भाजपा के दो सांसद डॉ. केपी सिंह और रामचरित्र निषाद भी हैं। ऐसे-ऐसे उद्योगपति और व्यवसायी हैं जो क्रिकेट मैच कराने के लिए ही लाखों खर्च कर देते हैं, लेकिन जब बात करमहीं की आई तो किसी ने मदद को हाथ नहीं बढ़या। इन सबकी आंखों का पानी मानो सूख चुका हो। चार मौतों से सहमा क्षेत्र इन जनप्रतिनिधियों की निंदा करते नहीं थकता। इस बात की भी चर्चा रही कि योगी सरकार में गरीब ब्राह्मण का परिवार उपचार के अभाव में खत्म हो गया।