प्रत्येक सप्ताह नियमावलियों में परिवर्तन किया जा रह है जिसके चलते अभियंताओं के साथ ठेकेदारों के बारह बज चुके हैं। सरकारी कार्यों की भांति एक ही कार्य को कई बार कराने से ठेकेदारों की कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छूट रही है। इसके चलते तमाम ठेकेदार अपने कार्यक्षेत्र के कामों को बंद करके पलायन कर चुके हैं जिसका प्रमुख कारण भुगतान को लेकर वादाखिलाफी बताया जा रहा है। जैसे मीटर लगाओ भुगतान लो, पोल लगाकर कंक्रीट कराओ भुगतान लो, फिर लाइन खींचो, ट्रांसफार्मर चार्ज करो भुगतान लो आदि।
प्रतिदिन नियम बदलने व ठेकेदारों को समय से भुगतान न करना ठेकेदारों व सरकार की योजनाओं को धता बताने की कोशिश दिख रही है। वहीं ब्लाकों पर तैनात इंजीनियरों की भी वही कुछ दशा देखने को मिल रही है। जब एक ही गांव में उन्हें उलझाकर उच्चस्थ अधिकारी उन्हें रखेंगे तो योजना के कार्यों में बढ़त कैसे और कहां होगी? सरकारी महकमे की भांति इस कम्पनी में भी सुविधा शुल्क पर कार्य होते देखे जा रहे हैं जिससे यह स्पष्ट होता दिख रहा है कि सरकार की योजना फेल हो जायेगी। ठीक से कार्य करने वाले ठेकेदार हो या इंजीनियर, यदि अधिकारी की बात नहीं माने तो चाहे सही हो या गलत, बाहर का रास्ता दिखा दिया जा रहा है। यदि औचक निरीक्षण कराया जाय तो स्पष्ट हो जायेगा कि कम्पनी से प्रभावित होकर कितने ठेकेदार अपना काम बन्द करके पलायन कर चुके हैं। कार्य अधर में लटक रहा है, इसका महज कारण कम्पनी की दोगली नीति है। ठेकेदारों व अभियंताओं का शोषण करना और येन-केन-प्रकारेण सरकार से अपना भुगतान करवाकर पलायन ही इस समय देखा जा रहा है।