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कहीं साजिश के तहत तो नहीं लगाई गई जौनपुर एआरटीओ कार्यालय में आग ?

locationजौनपुरPublished: Sep 07, 2016 04:01:00 pm

आरटीआई सूचना देने में देरी पर राज्य सूचना आयोग एआरटीओ जौनपुर पर पहले ही लगा चुका है 50000 का जुर्माना

fire in arto office

fire in arto office

जौनपुर. सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी कार्यालय जौनपुर में आग लगने की घटना में साजिश की आशंका जाहिर की जा रही है। बताया जाता है कि इस ऑफिस में दलालों के बिना कोई काम आसान नहीं है । यहां आये दिन मारपीट, दलाली, अवैध रूपयों की वसूली आम बात है, क्योंकि कई वर्षों से जमे यहां के बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई करने की कोई हिम्मत तक नहीं जुटा पाया है। आग में करीब 150 से अधिक महत्वपूर्ण फाइल जल गई है, ऐसे में इस बात को लेकर भी चर्चा है कि कहीं गुनाहों को छुपाने के लिए किसी बड़ी साजिश को तो अंजाम नहीं दिया गया है। 

प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर आरटीआई एक्टिविस्ट द्वारा मांगी गयी सूचना न देने के जुर्म में राज्य सूचना आयोग एआरटीओ पर 50000 हजार का जुर्माना लगा है । जिससे यहां के अधिकारियों के सर्विस रिकार्ड पर भी खतरा मंडरा रहा है ।

उल्लेखनीय है कि थाना अपराध निरोधक कमेटी कोतवाली शाहगंज के अध्यक्ष से आरटीआई एक्टिविस्ट प्रशांत अग्रहरि द्वारा अलग अलग तारीखों में सूचनाएं मांगी गयी थी ।

10 अक्टूबर 2013 को उपरोक्त कार्यालय से 7 बिन्दुओं पर व 23-8-2014 को 10 बिन्दुओं पर सूचना मांगी गयी थी । निर्धारित अवधि के 30 दिन बीत जाने के बाद प्रथम अपील जिलाधिकारी को प्रेषित करने के उपरान्त द्वितीय अपील 30 दिन बाद राज्य सूचना आयोग के समक्ष की गयी। विभाग द्वारा सूचना उपलब्ध न कराये जाने के बाद राज्य सूचना आयोग द्वारा प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए सूचना न देने के जुर्म में दिनांक 22-12-2015 को अलग अलग मामले व अपील संख्या एस5-1687/ए/2014 एवं एस5-567/ए/2014 में 250 रूपये प्रतिदिन की दर से 25000 रूपये का अर्थदंड /जुर्माना अधिरोपित किया है। 
इसी मामले में आयोग ने सख्त रूख अख्तियार करते हुए 30 सितम्बर 2016 व 6 अक्टूबर 2016 को एआरटीओ जौनपुर के अधिकारियों को राज्य सूचना आयोग ने लखनऊ में सूचना आयोग कोर्ट के समक्ष पेश होने को कहा है। 


इसी मामले में जौनपुर के कई अधिकारी अब जेल जा सकते हैं, ऐसे में मंगलवार को दिनदहाड़े एआरटीओ ऑफिस में आग लगना कई सवालिया निशान छोड़ रहा है। क्या वाकई में आग लगी है या अपने बचाव के लिए अगलगी की ऐसी साजिश का काम किये गए, जिससे इन्हें राज्य सूचना आयोग से राहत मिल सके। अब देखना यह है कि अधिकारी न्यायालय के समक्ष क्या तर्क रखते हैं ।


बता दें कि इस बाबत राज्य सूचना आयोग द्वारा जारी नोटिस पर एक बार डी.एम भानुचंद गोस्वामी व तत्कालीन एस .पी भारत सिंह जौनपुर द्वारा दिनांक 21 अप्रैल 2015 को एआरटीओ ऑफिस पर अचानक छापा मारा गया था। जिसमे 30 से 35 व्यक्ति अनाधिकृत रूप से कार्यालय में पकड़े भी गए थे । बाद में मामला ठन्डे बस्ते में चला गया। 


उल्लेखनीय है कि यहां तैनात एक बाबू काफी पहुंच वाला है, वह राज्य कर्मचारी संघ का नेता भी है। जिले के अधिकारियों को अपनी मुट्ठी में किये रहता है। यही कारण है कि एआरटीओ कार्यालय के कर्मचारियों पर कोई अधिकारी कार्रवाई करने से कतराता है। ऐसे में अब देखना है कि सूचना मागने वाले प्रशांत अग्रहरि को प्रशासनिक अधिकारी किस तरह सूचना उपलब्ध कराते हैं। 
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