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जानिए इस लोकसभा सीट पर भाजपा, सपा-बसपा और कांग्रेस क्यूं नहीं कर पा रही प्रत्याशी का ऐलान

locationजौनपुरPublished: Apr 12, 2019 07:21:57 pm

Submitted by:

Ashish Shukla

समय-समय पर कांग्रेस. सपा, भाजपा, बसपा को भी जिताकर ये संकेत दे दिया कि जौनपुर लोकसभा का मूड भांपना राजनीतिक पंडितों के लिए आसन नहीं है

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समय-समय पर कांग्रेस. सपा, भाजपा, बसपा को भी जिताकर ये संकेत दे दिया कि जौनपुर लोकसभा का मूड भांपना राजनीतिक पंडितों के लिए आसन नहीं है

जावेद अहमद

जौनपुर. यूपी में सभी सात चरणों में मतदान होना है। पहले चरण का मतदान हो चुका है जबकि दूसरे के लिए तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। लेकिन छठे चरण में होने वाले जौनपुर सदर लोकसभा सीट पर अब तक सपा-बसपा गठबंधन, भाजपा और कांग्रेस तीनों बड़े दलों ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारा है। इसे लेकर जहां जिले के राजनेताओं में भारी उहापोह की स्थिति है तो वहीं मतदाता भी अपने नेता के नाम पर उम्मीद की रोटियां सेंकते नहीं थक रहे हैं। कुल मिलाकर इस सीट के मतदाताओं की गुणा-गणित और जीत हार के पुराने रिकार्ड ने हर दलों की चिंता बढ़ा दी है। बड़े दिग्गजों की बात करें तो यहां के मतदाताओं ने कभी जनसंघ के नेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय को भी हार का स्वाद चखा दिया था, तो समय-समय पर कांग्रेस. सपा, भाजपा, बसपा को भी जिताकर ये संकेत दे दिया कि जौनपुर लोकसभा का मूड भांपना राजनीतिक पंडितों के लिए आसन नहीं है।
यहां की राजनीति पर नजर डालें तो 1984 के बाद कांग्रेस को यहां एक बार भी जीत नहीं मिली। बीजेपी ने 1989 में राजा यादवेंद्र दत्त के रूप में यहां से पहली बार जीत हासिल की थी। हालांकि 1991 में जनता दल ने बीजेपी से यह सीट छीन लिया था। 1996 में बीजेपी ने फिर से इस सीट पर कब्जा जमाया। 1996 से लेकर यहां की लड़ाई द्वीपक्षीय रही है और 4 चुनावों में एक बार बीजेपी तो एक बार सपा ने यह सीट जीता। 2009 में यह सिलसिला बसपा की जीत के बाद टूट गया। 2014 में बीजेपी ने यह सीट फिर से अपने नाम की। 1957 से लेकर 2014 तक 15 बार यहां लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। लेकिन कभी भी किसी दल या राजनेता को यहां की जनता ने लगातार हीरो नहीं माना। जिस कारण आज भी सभी दल प्रत्याशी घोषित करने को लेकर सावधानी बरत रहे हैं।
संघ में दबाव फैसला नहीं कर पा रही भाजपा

सूत्रों की मानें तो मौजूदा सांसद आरएसएस के बेहद करीबी हैं। संघ से इनके परिवार का ताल्लुक सालों से रहता आ रहा है। यही कारण था कि इन्हे 2014 में भाजपा ने उम्मीदवार बनाया। इस बार भी संघ केपी सिंह को प्रत्याशी बनाने का भाजपा पर दबाव बना रहा है। हालांकि पार्टी को जो रिपोर्ट भेजी गई उसमें केपी सिंह को दोबारा प्रत्याशी बनाए जाने पर पार्टी को नुकसान की आशंका जताई जा गई है।
बसपा कर रही इंतजार

गठबंधन में जौनपुर लोकसभा बसपा के खाते में है। बसपा इस बात का इंतजार कर रही है कि पहले भाजपा अपना उम्मीदवार घोषित करे ताकि जातीय समीकरण के हिसाब से वो किसी दूसरे जाति के उम्मीदवार को उतारकर लाभ ले सके। हालांकि पूर्व अधिकारी श्याम लाल यादव के नाम की चर्चा तेज है लेकिन इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो सकी।
कांग्रेस के पास चेहरा नहीं, भाजपा को पछाड़ने का दाव

सालों से जीत के लिए तरस रही कांग्रेस के दो बड़े नेताओं नदीम जावेद और अजय दूबे अज्जू ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। ऐसे में पार्टी के पास और कोई चेहरा नहीं है जो कांग्रेस को मजबूती दे सके। अभी एक सप्ताह पहले बसपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए अशोक सिंह के नाम पर पार्टी विचार कर रही है। कांग्रेस को लग रहा है कि अगर अशोक सिंह ने अपनी बिरादरी के 50 हजार वोट भी काट दिए तो वो भाजपा के बेस वोटर का नुकसान होगा औऱ यहां अगर बसपा मजबूत हुई तो भी आगे उसके लिए राह आसान हो सकेगी।

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