जौनपुर लोकसभा सीट पर पचास से अधिक दावेदार इस बार अपनी उम्मीदवारी की जुगत में थे। चाहे सीमा द्विवेदी हों या मनोज सिंह या यूपी सरकार में मंत्री गिरीश यादव ये सभी खुद के टिकच पक्का होने की बात कह रहे थे। भाजपा सूत्रों की मानें तो भाजपा संगठन ने जो रिपोर्ट भेजी थी उसमें भी मौजूदा सांसद केपी सिंह को लेकर जनता की फीडिंग अच्छी नहीं थी। लेकिन संघ में केपी सिंह की इतनी प्रबल दावेदारी रही कि संघ उनके नाम के अलावा किसी और पर विचार करने को राजी नहीं हो रहा था। आखिरकार एक बार फिर केपी सिंह के नाम पर मुहर लग ही गई।
2014 में भी केपी सिंह ने सबको चौंकाया था केपी सिंह की बात करें तो इस बात की चर्चा रहती है कि वो 2014 में भी जौनपुर की राजनीति में कोई खास चेहरा नहीं थे। लेकिन अटल सरकार में पूर्व गृहराज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद समेत कई दिग्गजों को पछाड़ते हुए आरएसएस ने केपी सिंह के नाम की पैरवी कर उन्हे टिकट दिला दिया। केपी सिंह का नाम आते ही जिले के नेता चौंक गये थे, वही एक बार फिर 2019 में भी हुआ।
बसपा के सुभाष पांडेय को हराया था
केपी सिंह ने 2014 में बसपा के सुभाष पांडेय को एक लाख से अधिक मतों से हराया था। इस बार जौनपुर लोकसभा गठबंधन में बसपा के खाते में गई है। यहां से बसपा ने पूर्व पीसीएस अधिकारी श्याम लाल यादव को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने देवब्रत मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है। केपी सिंह भाजपा सरकार में पूर्व मंत्री रहे स्व. उमानाथ सिंह के पुत्र हैं।