शेर गोई मेरी आदत है, ऐ अंजुम! बदनसीबी ने मेरे फन को उभरने न दिया, मरने के बाद कब्र पर आना तुम जरुर, अंजुम यह कह रहा है कोई बात आखिरी…दिल मे उतर जाने वाली उन चंद लाइनों की तरह न जाने कितने शेरों ने अंजुम जौनपुरी को हिन्दुस्तान के मशहूर शायरों में शुमार किया था।
उस्ताद कैफ भोपाली से शायरी की दुनिया की सीख ली। इस दौरान फिराक गोरखपुरी, अली सरदार जाफरी, वामिक जौनपुरी, कुमार बाराबंकी व कैफी आजमी जैसे चोटी के शायरों से उनके संबंध जगजाहिर होने लगे।
1981 में वो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के कराची में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय मुशायरे में भी शामिल हुए थे जहां लोग इनकी गजल के दीवाने हो गए। इस दौरान कई एवार्ड से भी उन्हें नवाजा गया। उन्होंने करबला के शहीदों पर सैकड़ों नौहे भी लिखे।
उनकी तबीयत कुछ महीने से खराब चल रही थी। पैर की एक नस दब जाने के कारण पैर में इनफेक्शन फैल गया था। बीएचयू में ऑपरेशन करा कर पैर कटवाना भी पड़ा। सोमवार की रात अचानक उनकी तबियत फिर ख़राब होने लगी। उपचार शुरू हुआ लेकिन उन्होंने इस दुनिया को आखिरकार अलविदा कह दिया।