scriptकभी अंगूठा छाप थीं मुन्नी बेगम, आज 5000 महिलाओं को शिक्षित कर कायम की मिसाल | Success Story of Munni Begum Who Literate 5000 Womens | Patrika News

कभी अंगूठा छाप थीं मुन्नी बेगम, आज 5000 महिलाओं को शिक्षित कर कायम की मिसाल

locationजौनपुरPublished: Oct 23, 2019 03:49:41 pm

बच्चों की पुरानी रफ कॉपियों पर पढना सीखा।

Succes Story Munni Begum

सक्सेस स्टोरी मुन्नी बेेेेगम

जावेद अहमद

जौनपुर. एक ऐसी अबला जो खुद तो अंगूठा टेक थी, लेकिन जब कुछ करने की ठान ली तो पहले अपने आप को साक्षर किया। फिर अपने जैसी तमाम निरक्षर महिलाओं को शिक्षा की धारा से जोड़ कर उन्हें भी सबला बना दिया। अपने आत्मविश्वास के बल पर अब तक वो 5000 महिलाओं को शिक्षित कर चुकी हैं। इसके लिए उन्हें जिलाधिकारी जौनपुर एवं प्रतापगढ़ ने ‘मैं मलाला हूं’ पुरस्कार से नवाजा तो राष्ट्रपति भी सम्मानित कर चुके हैं।
महराजगंज विकासखंड के पहाड़पुर में 1971 में जन्मी मुन्नी बेगम आज किसी परिचय की मोहताज नहीं। उन्हें कभी स्कूल जाने मौका नहीं मिला। उस पर ज़ुल्म ये की 12 साल की छोटी सी उम्र में ही उनकी शादी रामनाथ हटिया गांव में कर दी गई। पति गुजरात में नौकरी करते थे। टेलीफोन मयस्सर नहीं था इसलिए पति खत लिखकर खैरियत लेते थे। मुन्नी बेगम का खत दूसरे पढ़ते और जवाब भी मजबूरन किसी और से ही लिखवाना पड़ता। ऐसे में वह चाह कर भी दिल का हाल पति को नहीं लिखवा पातीं। इससे आजिज़ मुन्नी बेगम ने पढ़ने-लिखने की ठानी।
घर के बाहर मिट्टी और कोयले से तथा बच्चों की फेकी गई रफ कॉपियों पर अभ्यास करना शुरू कर दिया। इसके बाद प्राइमरी फिर जूनियर हाई स्कूल में प्रवेश लेकर आगे की शिक्षा शुरू की। वो सिर्फ इतने पर ही नहीं रुकीं, उन्होंने 1997 में हाईस्कूल, 1999 मे इण्टरमीडिएट, 2004 में बी ए, 2017 में एमए का इम्तेहान पास किया। पति की बीमारी के बाद 1994 में जब घर चलाना मुश्किल हो गया तो मुन्नी बेगम ने महराजगंज स्थित एक प्राइवेट स्कूल में 500 रुपये महीने की तनख्वाह पर पढ़ाना शुरू कर दिया। उस वक्त उनका परिवार एक झोपड़ी में रहता था और बमुश्किल एक वक्त की रोटी ही परिवार को नसीब हो पाती। साल 2000 के त्रीस्तरीय पंचायत चुनाव में उनका भाग्य थोड़ा चमका और वो अपना दल के समर्थन से वार्ड नंबर 27 से जिला पंचायत सदस्य चुनी गईं। यहीं से उनकी सामाजिक सक्रियता बढ़ गई।
Succes Story Munni Begum
तरुण चेतना सामाजिक संस्था से जुड़कर उन्होंने साक्षरता और महिला सशक्तिकरण अभियान चलाया, जिसके लिए जिला अधिकारी प्रतापगढ़ सेंथिल पांडियन ने उन्हें पुरस्कृत किया। 2015 में जिलाधिकारी जौनपुर भानुचंद्र गोस्वामी ने महिला साक्षरता और सुरक्षा के लिए ‘मैं भी मलाला हूं’ पुरस्कार से नवाजा। महिला सशक्तिकरण और साक्षरता अभियान के लिए उनकी ओर से किये जा रहे कार्यों के आधार पर 2018 में उपराष्ट्रपति ने इन्हें ‘एग्जांपल’ पुरस्कार से सम्मानित किया। मुन्नी बेगम के द्वारा अब तक लगभग 5000 से ज्यादा महिलाएं शिक्षित हो चुकी है।
हजारों महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई समेत कई रोजगार परक प्रशिक्षण दे चुकी हैं। पति की मौत के बाद भी मुन्नी बेगम का हौसला नहीं टूटा और वो आज भी महिला सशक्तिकरण के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर रही हैं। उनका हौसला और लगन देखकर हर तरफ लोग प्रशंसा और उके जज्बे को सलाम करते हैं।
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