कार्यक्रम का शुभारंभ आदिवासी रीति-रिवाज पंचतत्व बाबादेव, धरती मां की पूजा अर्चना के साथ किया। साथ ही भगवान बिरसा मुंडा, क्रांतिकारी टंट्या भील, वीर सेनानी परथी दादा भूरा, वीरांगना रानी दुर्गावती, तिलका माझी, राणा पुंजा भील, वीर एकलव्य, रघुनाथशाह मंडावी, शंकर शाह की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर पूजा अर्चना की।
स्वागत भाषण सामाजिक कार्यकर्ता प्रो. महेश भाबर ने देते हुए आदिवासी चिंतन शिविर के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। समाज की संस्कृति, वैचारिक एकीकरण ओर संवैधानिक हक- अधिकारों, जल-जंगल और जमीन का संरक्षण के साथ मालकियत का हक से संबंध में प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता भंवरलाल परमार ने आदिवासियों की ऐतिहासक सांस्कृतिक शुद्धिकरण व संवैधानिक अधिकारों से अवगत करवाया। गुजरात से पधारे सकजी गुरुजी ने संस्कृति बचाव, सामाजिक पारंपरिक रुढ़ी प्रथाओं की पर अपनी बात रखते हुए भील गीत के माध्यम से समाज को जाग्रत करने का संदेश दिया। जयस संस्थापक विक्रम अछालिया ने आदिवासियों की पूजा पद्धति, कार्य शैली के बारे में बताया कि हम हर कार्य प्रकृति को आधार मानकर करते हैं। धरती, सूरज, चांद, वायु, अग्नि से हमारा अटूट संबंध है। जयस के प्रदेश प्रवक्ता महेंद्र कन्नौज ने आदिवासी गीत प्रस्तुत किया। संचालन भीम सिंह मसनिया एवं अनिल कटारा ने किया। आभार लक्ष्मण डिंडोर ने माना।