जेवियर बन सकते है परेशानी विधानसभा चुनाव के दौरान बागी जेवियर की वजह से सांसद कांतिलाल भूरिया के बेटे डॉ. विक्रांत भूरिया को हार का सामना करना पड़ा था। जेवियर साफ कर चुके हैं कि लोकसभा चुनाव में भी वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े होंगे। जयस उनके साथ है। ऐसे में कांतिलाल के लिए वे इस बार भी परेशानी का कारण बन सकते हैं।
भाजपा से ये हैं दावेदार गुमानसिंह डामोर : लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के मुख्य अभियंता के पद से सेवानिवृत्त हुए डामोर वर्तमान में झाबुआ से विधायक है। उन्होंने विपरित परिस्थितियों में विधानसभा चुनाव में सांसद कांतिलाल भूरिया के बेटे डॉ. विक्रांत भूरिया को पराजित कर अपनी क्षमता दिखाई। सबसे मजबूत दावेदार है। यदि पार्टी वर्तमान विधायकों को टिकट नहीं देने का फैसला करती है तो ही उनका नाम कट सकता है।
गौरसिंह वसुनिया: तीन बार जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष रहे। 1992 में राजस्थान राज्य के कुशलगढ़ से भाजपा की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े पर हार गए। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने थांदला विधानसभा से टिकट दिया। निर्दलीय प्रत्याशी ने वसुनिया की जमानत जब्त करा दी।
नागरसिंह चौहान: आलीराजपुर से लगातार तीन बार विधायक रहे। पिछला चुनाव हार गए। भिलाला समाज से आते हैं। अब तक चार बार भाजपा ने भिलाला समुदाय के नेता को टिकट दिया और हर बार हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1984 और 1989 में भगवानसिंह चौहान को टिकट दिया था तो वहीं 1991 और 2004 में रेलम चौहान को प्रत्याशी बनाया गया था। चूंकि पूरा संसदीय क्षेत्र भील बहुल है।
निर्मला भूरिया: यदि उनका रिकॉर्ड देखा जाए तो 1993 में पहली बार विधायक चुनी गई। इसके बाद 1998 व 2003 में भी विधायक बनी। 2008 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 2013 में उनकी पुन:वापसी हुई। उनके सांसद पिता दिलीपसिंह भूरिया का आकस्मिक निधन हो जाने से पार्टी ने 2015 में उन्हें उप चुनाव लड़वाया, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। पिछले विधानसभा चुनाव में भी वे पराजित हुई।
संगीता चारेल: सैलाना विधानसभा में भाजपा का खाता खोला। पिछले विधानसभा में टिकट नहीं मिला तो बागी होकर नामांकन दाखिल किया। बाद में खुद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के समझाने पर नाम वापस लिया। हालांकि उनका राजनीतिक दायरा सैलाना तक ही सिमटा है। ऐसे में पार्टी संभवतया: उन पर दांव नहीं खेलेगी।