वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राहत पैकेज की घोषणा के दौरान कहा था कि हजारों मीट्रिक टन दाल गरीबों बांट चुके हैं। विशेषकर ट्राइबल इलाकों के गरीब तबके के बच्चों को प्रोटीन की कमी ना हो। इसलिए चावल और गेहूं के साथ 1 किलो दाल देने की घोषणा की थी। लेकिन इस योजना से झाबुआ जिला गरीब आदिवासी मरहूम रहे। लॉकडाउन 4 चालू हो गया है। 50 दिन से ज्यादा लाकडाउन के दिन बीत चुके है, लेकिन आदिवासी अंचल के गरीबों के किचन तक अभी तक दाल नहीं पहुंची। पत्रिका की टीम इस मुद्दे को लेकर कई गांवों में महिलाओं और ग्रामीण से बातचीत की। हकीकत पता चली यहां पर किसी भी आदिवासी या ग्रामीण इलाकों में दाल नहीं मिली। जो दाल शुरुआत में मिलनी थी। वह दाल लाकडाउन का चौथा चरण चालू होने के बाद तक भी गरीबों के घर तक नहीं पहुंची।
दाल का स्वाद चखा ही नहीं
जिले के पुलधावड़ी, बिजियाडूंगरी, ढेकलबड़ी, पिपलीपाड़ा और अनेक गांव हैं। जहां पर भारत सरकार द्वारा दी गई गरीबों के लिए दाल का स्वाद चखा ही नहीं। फैसले को लागू करने में देरी का कारण नेफेड नागरिक आपूर्ति निगम, फूड एंड सप्लाई, केंद्र और राज्य के बीच का घालमेल है। इससे अभी तक गरीब परिवार दाल से वंचित है। ढेकल बड़ी गांव की पूजा, लबुड़ी, टीना ने बताया गेहूं, चावल तो मिले व दाल नहीं मिली। पिछले एक महीना से राशन नहीं मिला। उसके पहले राशन कार्ड के जरिए जो राशन मिला था वही मिला। उसके अलावा कुछ भी नहीं मिला। दाल तो हमने देखी तक नहीं। कैलाश, सीता, मोटली बताती है कि उन्हें चावल और गेहूं तो मिला, लेकिन दाल नहीं मिली।