scriptसरकार ने सात दिन में 10 मांगे नहीं मानी तो झाबुआ उपचुनाव में जयस उतारेगी अपना उम्मीदवार | If the government does not agree to 10 demands in seven days, Jayas w | Patrika News

सरकार ने सात दिन में 10 मांगे नहीं मानी तो झाबुआ उपचुनाव में जयस उतारेगी अपना उम्मीदवार

locationझाबुआPublished: Sep 08, 2019 11:02:39 pm

महापंचायत में चेतावनी…जयस के राष्ट्रीय संरक्षक और मनावर से कांग्रेस विधायक विधायक डॉ. हीरालाल अलावा ने जयस महापंचायत में की घोषणा

सरकार ने सात दिन में 10 मांगे नहीं मानी तो झाबुआ उपचुनाव में जयस उतारेगी अपना उम्मीदवार

सरकार ने सात दिन में 10 मांगे नहीं मानी तो झाबुआ उपचुनाव में जयस उतारेगी अपना उम्मीदवार

झाबुआ. जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) ने कमलनाथ सरकार के सामने अपनी प्रदेशस्तरीय 10 मांगे रखी है। यदि सात दिन में सरकार इन पर कोई ठोस निर्णय नहीं लेती है तो फिर झाबुआ विधानसभा के उपचुनाव में जयस अपना उम्मीदवार उतारेगा। यह दावा जयस के राष्ट्रीय संरक्षक और मनावर से कांग्रेस विधायक डॉ.हीरालाल अलावा ने किया। वे रविवार को पॉलीटेक्निक कॉलेज में आयोजित जयस की महापंचायत में शामिल होने आए थे।
उन्होंने कहा, कुछ समय बाद झाबुआ में उप चुनाव होना है। इसके लिए सरकार और विपक्ष दोनों की यहां जबर्दस्त दिलचस्पी है। सबकी नजर हमारी महापंचायत पर टिकी है। यदि नए युवा आगे आते हैं तो हम उनके साथ खड़े रहेंगे। आप एक कदम आगे बढ़ाएं, जयस की पूरी टीम साथ है। आज आदिवासियों के अधिकारों के लिए झाबुआ में युवा नेतृत्व देने की जरूरत है। अभी नहीं तो कभी नहीं। आने वाले समय में हम समाज को सशक्त नेतृत्व देंगे, लेकिन उसके लिए आपको विश्वास करना होगा। युवा नेतृत्व समय की मांग है। आप लोग यदि नेताओं के बहकावे में आआगे तो कुछ हासिल नहीं होगा। इसके लिए नए युवाओं पर भरोसा करना होगा।
डॉ. अलावा ने कहा कि उप चुनाव के चलते झाबुआ में आए दिन कोई मंत्री आकर घोषणाएं कर रहा है। इससे आदिवासियों का कोई भला नहीं होने वाला। हमें तो रोजगार चाहिए और दो वक्त की रोटी दे सके ऐसी सरकार चाहिए। यहां से होने वाला पलायन रुकना चाहिए। स्थानीयस्तर पर रोजगार की व्यवस्था होनी चाहिए। हम सरकार के विरोधी नहीं हैं, लेकिन यदि सरकार आदिवासियों का नहीं सुनेगी तो विरोध पर उतरने में समय नहीं लगेगा। कमलनाथ सरकार से हमारी बहुत उम्मीदें और अपेक्षा है। अभी वक्त है कि आदिवासियों की सुनी जाए। डॉ. अलावा ने कहा-कुछ लोगों ने चैलेंज दिया था कि हम झाबुआ की धरती पर जयस की महापंचायत नहीं होने देंगे। उन्हें जवाब देने के लिए यह महापंचायत बुलाई है। जयस को लेकर कई तरह के भ्रम और अफवाह फैलाई जा रही है, उन्हें दूर करने के लिए ये महापंचायत बुलाई है। जो लोग खुद को जयस का बताते हैं वे अपने काम से ये बात साबित करें। कहा जाता हैकि जयस किसी धर्म और भगवान को नहीं मानता। जयस किसी समुदाय विशेष के लिए काम करता है। तो आप सभी को बताना चाहूंगा कि जयस अंतिम पंक्ति में खड़े हर उस व्यक्ति की बात करता है चाहे आदिवासी हो या गैर आदिवासी हो। हम किसी-धर्म या जाति के विरोधी नहीं है। हम किसी समुदाय के विरोधी नहीं है, पर गरीबों की लड़ाई लडऩे हम किसी से भी भिड़ जाते हैं। 7-8 साल का इतिहास उठाकर देख लो। लोग कहते हैं डॉ. हीरालाल अलावा को नेतागिरी का शौक है। मुझे नेतागिरी का शौक नहीं बात मुद्दों की है। आज हम गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। पैसा कानून बना है, लेकिन नियम आज तक नहीं बने। 5वीं अनुसूची के नियम आज तक नहीं बने। राजनीति नहीं करेंगे, आवाज नहीं उठाएंगे तो आदिवासियों की कहीं सुनवाई नहीं होगी। लोकतंत्र में मांग मनवाना है तो विधानसभा से लेकर लोकसभा तक दमदारी से भाग लेना होगा। हम क्यों चुनाव नहीं लड़े? क्यों राजनीति नहीं करें? क्या राजनीति ऐसे लोग करेंगे जो 5 साल में आदिवासियों के लिए एक शब्द भी नहीं बोले।
आनंद राय ने माना कि ऑडियों में उनकी आवाज है- पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह के समर्थक कहे जाने वाले आनंद राय भी आदिवासी महापंचायत में विधायक हीरालाल अलावा के साथ आए थे। जब उनसे धार के आबकारी अधिकारी के साथ हुई बातचीत के ऑडियो वायरल होने के बारे में सवाल पूछा गया तो बोले उसमें मेरी ही आवाज थी। विधायक उमंग सिंघार और राजवर्धनसिंह को लेकर जो भी बोला वो आबकारी अधिकार ने बोला। मामले में आबकारी अधिकारी को हटा दिया है व जांच की जा रही है। राय ने सरदार सरोवर के डूब प्रभावितों के लिए जयस को आवाज उठाने का आह्वान किया। कहा आदिवासी मंत्रणा परिषद में जितनी राशि दी , ईमानदारी से खर्च किया जाता तो झाबुआ की स्थिति बैंकाक से बेहतर होती। उन्होंने झाबुआ में नया ऊर्जावान नेतृत्व खड़ा करने पर जोर दिया।
डॉ. हीरालाल अलावा ने इन तीन मुद्दों का प्रमुखता से जिक्र किया
1. पलायन: झाबुआ से अवैध तरीके से बसों में आदिवासियों को भरकर गुजरात ले जाया
जा रहा है। आने-जाने वालों का कोई रेकॉर्ड नहीं है। कुछ दिनों पूर्व ही गुजरात में झाबुआ के 8 आदिवासियों की मौत हो गई थी। क्या ये हमारी सरकार का कर्तव्य नहीं है कि वे आदिवासियों को उनके ही गांव और क्षेत्र में रोजगार दे।
2. केमिकल फैक्टरियां: मेघनगर की केमिकल फैक्टरियों को लेकर कहा जहरीले रसायनों से झाबुआ की धरती भी प्रभावित हो रही है। इसका पता आज नहीं आने वाले सालों में चलेगा। इसके लिए हमें ही आवाज उठानी होगी।
3. सिलिकोसिस बीमारी: झाबुआ, आलीराजपुर, धार और बड़वानी जिले के ग्रामीण आदिवासी गुजरात में पत्थर पीसने की फैक्टरियों में काम करने जाते हैं। वे सिलिकोसिस बीमारी का शिकार हो रहे हैं। कोई भी सरकार इसे लेकर गंभीर नहीं है। आदिवासी जिलो की चिकित्सा व्यवस्था बदतर है। हम चाहते हैं कि सरकार हमारे जिले को मेडिकल कॉलेज दें। ताकि व्यवस्था में सुधार हो सके।
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