डॉ. अलावा ने कहा कि उप चुनाव के चलते झाबुआ में आए दिन कोई मंत्री आकर घोषणाएं कर रहा है। इससे आदिवासियों का कोई भला नहीं होने वाला। हमें तो रोजगार चाहिए और दो वक्त की रोटी दे सके ऐसी सरकार चाहिए। यहां से होने वाला पलायन रुकना चाहिए। स्थानीयस्तर पर रोजगार की व्यवस्था होनी चाहिए। हम सरकार के विरोधी नहीं हैं, लेकिन यदि सरकार आदिवासियों का नहीं सुनेगी तो विरोध पर उतरने में समय नहीं लगेगा। कमलनाथ सरकार से हमारी बहुत उम्मीदें और अपेक्षा है। अभी वक्त है कि आदिवासियों की सुनी जाए। डॉ. अलावा ने कहा-कुछ लोगों ने चैलेंज दिया था कि हम झाबुआ की धरती पर जयस की महापंचायत नहीं होने देंगे। उन्हें जवाब देने के लिए यह महापंचायत बुलाई है। जयस को लेकर कई तरह के भ्रम और अफवाह फैलाई जा रही है, उन्हें दूर करने के लिए ये महापंचायत बुलाई है। जो लोग खुद को जयस का बताते हैं वे अपने काम से ये बात साबित करें। कहा जाता हैकि जयस किसी धर्म और भगवान को नहीं मानता। जयस किसी समुदाय विशेष के लिए काम करता है। तो आप सभी को बताना चाहूंगा कि जयस अंतिम पंक्ति में खड़े हर उस व्यक्ति की बात करता है चाहे आदिवासी हो या गैर आदिवासी हो। हम किसी-धर्म या जाति के विरोधी नहीं है। हम किसी समुदाय के विरोधी नहीं है, पर गरीबों की लड़ाई लडऩे हम किसी से भी भिड़ जाते हैं। 7-8 साल का इतिहास उठाकर देख लो। लोग कहते हैं डॉ. हीरालाल अलावा को नेतागिरी का शौक है। मुझे नेतागिरी का शौक नहीं बात मुद्दों की है। आज हम गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। पैसा कानून बना है, लेकिन नियम आज तक नहीं बने। 5वीं अनुसूची के नियम आज तक नहीं बने। राजनीति नहीं करेंगे, आवाज नहीं उठाएंगे तो आदिवासियों की कहीं सुनवाई नहीं होगी। लोकतंत्र में मांग मनवाना है तो विधानसभा से लेकर लोकसभा तक दमदारी से भाग लेना होगा। हम क्यों चुनाव नहीं लड़े? क्यों राजनीति नहीं करें? क्या राजनीति ऐसे लोग करेंगे जो 5 साल में आदिवासियों के लिए एक शब्द भी नहीं बोले।
1. पलायन: झाबुआ से अवैध तरीके से बसों में आदिवासियों को भरकर गुजरात ले जाया
जा रहा है। आने-जाने वालों का कोई रेकॉर्ड नहीं है। कुछ दिनों पूर्व ही गुजरात में झाबुआ के 8 आदिवासियों की मौत हो गई थी। क्या ये हमारी सरकार का कर्तव्य नहीं है कि वे आदिवासियों को उनके ही गांव और क्षेत्र में रोजगार दे।
2. केमिकल फैक्टरियां: मेघनगर की केमिकल फैक्टरियों को लेकर कहा जहरीले रसायनों से झाबुआ की धरती भी प्रभावित हो रही है। इसका पता आज नहीं आने वाले सालों में चलेगा। इसके लिए हमें ही आवाज उठानी होगी।
3. सिलिकोसिस बीमारी: झाबुआ, आलीराजपुर, धार और बड़वानी जिले के ग्रामीण आदिवासी गुजरात में पत्थर पीसने की फैक्टरियों में काम करने जाते हैं। वे सिलिकोसिस बीमारी का शिकार हो रहे हैं। कोई भी सरकार इसे लेकर गंभीर नहीं है। आदिवासी जिलो की चिकित्सा व्यवस्था बदतर है। हम चाहते हैं कि सरकार हमारे जिले को मेडिकल कॉलेज दें। ताकि व्यवस्था में सुधार हो सके।