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कांग्रेस पार्षदों के विरोध पर सीएमओ ने कहा-शासन से लेंगे दिशा निर्देश

locationझाबुआPublished: Jul 05, 2023 12:02:55 am

Submitted by:

binod singh

नगर परिषद की बैठक: पार्षद बोले आदिवासी कैसे दे पाएंगे बाजार बैठकी का एक मुश्त शुल्क

कांग्रेस पार्षदों के विरोध पर सीएमओ ने कहा-शासन से लेंगे दिशा निर्देश
कांग्रेस पार्षदों के विरोध पर सीएमओ ने कहा-शासन से लेंगे दिशा निर्देश
झाबुआ. नगर पालिका परिषद की बैठक में मंगलवार को बाजार बैठकी के मुद्दे पर जमकर हंगामा हुआ। कांग्रेसी पार्षदों ने खुलकर कहा कि ग्रामीण आदिवासी एकमुश्त शुल्क कैसे दे पाएंगे। जनजातीय क्षेत्र में शासन का यह आदेश व्यावहारिक नहीं है।
भाजपा पार्षद खुलकर तो कुछ नहीं बोले, लेकिन उनकी भी मौन सहमति रही। ऐसे में सीएमओ को कहना पड़ा कि इस विषय में शासन से मार्गदर्शन मांगा जाएगा। दरअसल हाल ही में शासन ने एक आदेश जारी करते हुए बाजार बैठकी के प्रतिदिन शुल्क वसूली के ठेके को निरस्त करते हुए अर्धवार्षिक और वार्षिक दरों का निर्धारण करने को कहा है। मंगलवार को जब परिषद की बैठक में यह विषय आया तो कांग्रेसी पार्षद खड़े हो गए। वार्ड 7 की पार्षद रोशन रशीद कुरैशी और वार्ड 17 की पार्षद मालू डोडियार ने कहा कि आसपास से महीने में कुछ समय के लिए सब्जी बेचने के लिए आने वाले ग्रामीण अर्धवार्षिक और सलाना शुल्क कैसे दे पाएंगे। बड़े शहरों में तो यह आदेश लागू किया जा सकता है, लेकिन जनजाति क्षेत्र के लिए यह आदेश गैर व्यावहारिक है। काफी देर तक चली बहस के बाद आखिरकार सीएमओ को कहना पड़ा कि इस संबंध में शासन से मार्गदर्शन मांगा जाएगा। इसके बाद ही आगे कुछ निर्णय करेंगे। बैठक में नपाध्यक्ष कविता ङ्क्षसगार, उपाध्यक्ष लाखन ङ्क्षसह सोलंकी, पर्वत मकवाना, पंडित महेंद्र तिवारी, विजय चौहान, बसंती बारिया, अनिला बैस, रेखा राठौड़, धूमा डामोर, रोशन रशीद कुरैशी, मालू डोडियार आदि मौजूद थे।
झाबुआ में यह है व्यावहारिक परेशानी
नगर पालिका बड़े दुकानदारों से तो अर्धवार्षिक और सलाना शुल्क की वसूली कर लेगी, लेकिन दूरदराज से आने वाले ग्रामीणों से यह राशि लेना संभव नहीं। अधिकांश ग्रामीण रोजाना सब्जी बेचने के लिए नहीं आते हैं। कुछ ग्रामीण सिर्फ सीजन में ही दुकान लगाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि वे पूरे सालभर या छह माह के लिए पैसे क्यों देंग?
झाबुआ नगर पालिका का 12 अप्रैल को 21 लाख 50 हजार रुपए में बाजार बैठकी का ठेका हुआ था। शहर में करीब 400 दुकान लगती हैं और एक दुकान से 10 रुपए प्रति दिन की वसूली की जाती है। हाट बाजार के दिन लगने वाली दुकान का आंकड़ा अलग है। यदि ठेके को सुचारू रखा जाता है तो नगर पालिका को ठेके की राशि के अनुसार राजस्व मिलना ही है। यदि यह व्यवस्था नगर पालिका अपने हाथ में लेती है तो जरूरी नहीं कि इतना राजस्व जुटाया जा सकेगा
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