लॉकडाउन के साथ ही लगातार गुजरात से प्रवासी मजदूर अपने घरों की और भागने लगे थे। किसी ने लॉकडाउन के बीच काम बंद होने से भुखमरी की नौबत को घर जाने की वजह बताई तो किसी ने कहा था की ठेकेदारों, मालिकों ने फैक्ट्रियों पर ताले जड़ दिए और हमें भूखे मरने को छोड़ दिया न ही आशियाना दिया न ही खाने को दो वक्त की रोटी तो कोई बोला की सहायता तो दूर की बात अब तक काम करने का पूरा मेहनताना भी नहीं दिया। घर जाने को लेकर सबके अपने तर्क थे। पिटोल बॉर्डर पर मप्र सरकार ने इन लाखों मजदूरों को नि:शुल्क भोजन पानी सहित बसों से अपने अपने घरो तक पहुंचाया। जो आज भी जारी है।
खुद ही वाहनों की व्यवस्था कर जा रहे
प्रदेश से बाहर आने और जाने के लिए पास की आवश्यकता होगी। राज्य से बाहर काम पर जाने का लिए पास तभी जारी होंगे। जब सम्बंधित फर्म, ठेकेदार लिखित में उनके रहने खाने का जिम्मा उठाए। एक वाहन में अधिकतम 3 व्यक्तियों के सफऱ की अनुमति दी जा रही है, लेकिन लॉक डाउन से हालाकान हुए वही प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्य से बिना पास लिए ही ठेकेदारों द्वारा भेजी जा रही बसों या ठेकेदारों द्वारा किराया देने की बात पर खुद ही वाहनों की व्यवस्था कर पुन: गुजरात का रुख कर रहे हैं।
बस, वाहन संचालकों के पास मप्र सरकार का कोई पास उपलब्ध नहीं होता। किसी-किसी वाहनों में होता भी है तो गुजरात का, बसों, जीप, पिक अप के माध्यम से बिना शारीरिक दूरी के पुन: गुजरात जा रहे इन मजदूरों में झाबुआ जिले के साथ ही सीहोर , भिण्ड , मुरैना , ग्वालियर सहित मप्र के सभी हिस्सों के लोग शामिल हैं। जो बताते है कि उनके ठेकेदार ने उनको लेने के लिए गाड़ी भेजी है और उन्होंने फ़ोन पर कहा है कि अब से पूरी जवाबदारी उनकी रहेगी। चाहे काम चले या बंद रहे यदि वे ठेकेदार वाकई इन मजदूरों के प्रति इतने ही वफ ादार है जितना की ये मजदूर जो उनके फ ़ोन करने मात्र से मौखिक जवाबदारी लेने भर से ही उनके बुलावे पर वापस जाने को तैयार हैं। जबकि आज की स्थिति में मप्र की तुलना में गुजरात में संक्रमण भी दोगुना है तो क्या वही ठेकेदार मप्र सरकार को लिखित रूप से जानकारी देकर व जवाबदारी लेकर पास प्राप्त कर भी ले जा सकते हैं।