उन्होंने बताया कि श्रावक तीन तरह के होते हैं। जो सदा धर्म करे, जो सिर्फ सावन भादौ में धर्म करे और तीसरे कदैया .जो कभी कभी या सिर्फ संवत्सरी को धर्म करे। प्रमोद यशा ने बताया कि पर्व पर्युषण आत्मा का जीर्णोद्धार करने वाला पर्व है। पर्युषण में चारों कशायों का नाश कर आत्मा के नज़दीक जाने का उपयुक्त समय है। उन्होंने बादशाह अकबर व हिरसुरी का उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह जैन धर्म की अहिंसक प्रकृति देखकर अकबर प्रतिबोधित हुआ और उसने कत्लखाने बंद करवाए। हम यदि पूरी तरह जयना पाले व हमारे पर्व पर्युषण के 5 कर्तव्यों को पाले 1 अमारी परिवर्तन 2 मान कषाय का त्याग, 3 सर्व जीवों के प्रति क्षमा भाव, 4 खाने की प्रवृति को त्याग कर कम से कम अ_म करना, 5 चैत्य परिपाटी इन सब का संक्षेप में अर्थ है कि सभी जीवों पर दया रख कर दुआएं एकत्र कर साधर्मी भक्ति करना। व्रतादि कर धर्म द्वारा सम्यग दर्शन प्राप्त करना। जीने की इच्छा हर जीव को होती है,जीव हिंसा से कोई कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। पर्व पर्युषण अपने स्वभाव को पहचानने, दूसरों की चिंता रखने व धर्म को जीवन मे उतारने के लिए है। गुरुवार को प्रभु की अंग रचना का लाभ डॉ. प्रदीप संघवी परिवार ने लिया। श्री संघ अध्यक्ष संजय मेहता ने स्थानीय बावन जिनालय जैन मंदिर, रंगपुरा जैन मंदिर, महावीर बाग, दादावाड़ी दादावाड़ी गंधर्व मंदिर, नाकोड़ा पाश्र्वनाथ मंदिर, नाकोड़ा भैरव मंदिर, देवझिरी जैन मंदिर में दर्शन के लिए भीड़ रही। वहीं स्थानीय हेमेंद्र पुष्प आयंबिल खाता भवन में आयंबिल की आराधना हुई।