बाबागल के पर्व को स्थानीय भाषा में गुलेटी भी बोला जाता है। गल क्षेत्र के आसपास ढोल मांदल की थाप और बांसुरी की धुन के साथ जनजातीय नृत्य टोलियां मेले का वतावरण बनाती नजर आई। शाम तक अंचल के साथ साथ संपूर्ण क्षेत्र कुर्राटियों एवं जनजातीय संगीत के सुरों से गूंज उठा। करड़ावद, गोपालपुरा, परवट, अन्तर्वेलिया, कालापीपल, कगझर, बिलिड़ोज, आम्बाखोदरा, सहित पूरे अंचल में दोपहर 4 बजे से रात 8 बजे तक आदिवासी संस्कृति की आस्था का मेला लगा रहा। युवा परम्परागत संगीत पर थिरकते रहे। लोक संस्कृति की छटा ऐसी बिखरी की पूरा शहर उत्साह और उमंग में रंग गया।
करड़ावद बड़ी में 70 फीट ऊंचा गल : करड़ावद बड़ी में 70 फ ़ीट ऊंचा गल बनाया। अधिक ऊंचाई के बाद भी शौर्य और गौरव के प्रतिक बाबा गल की 26 मन्नतधारियों ने परिक्रमा लगाई। स्थानीय लोगों ने दावा किया कि धार , झाबुआ और आलीराजपुर क्षेत्र में सबसे ज्यादा उंचाई पर करड़ावद का गल बांधा जाता है। प्रारंभ में इसकी ऊंचाई 100 फ़ ीट तक थी, लेकिन हर बार इतनी ऊंचाई पर मन्नतधारी को घुमाने पर हादसा होने का भय बना रहता है। आशंका के चलते ऊंचाई को लगातार कम किया जा रहा है।
करड़ावद बड़ी में 70 फीट ऊंचा गल : करड़ावद बड़ी में 70 फ ़ीट ऊंचा गल बनाया। अधिक ऊंचाई के बाद भी शौर्य और गौरव के प्रतिक बाबा गल की 26 मन्नतधारियों ने परिक्रमा लगाई। स्थानीय लोगों ने दावा किया कि धार , झाबुआ और आलीराजपुर क्षेत्र में सबसे ज्यादा उंचाई पर करड़ावद का गल बांधा जाता है। प्रारंभ में इसकी ऊंचाई 100 फ़ ीट तक थी, लेकिन हर बार इतनी ऊंचाई पर मन्नतधारी को घुमाने पर हादसा होने का भय बना रहता है। आशंका के चलते ऊंचाई को लगातार कम किया जा रहा है।
ागल से बली चढ़ाकर आशीर्वाद मांगा
गल की परिक्रमा लगाने वाले तड़वी राकेश भूरिया ने बताया कि बिलिडोज में झाबुआ में एक हजार से अधिक लोग गलबाबा पहुंचकर अपनी मन्नत उतारते हैं। वर्षो से समाज की परम्परा रही है की तड़वी सबसे पहले गल की परिक्रमा लगाकर बली देता है। इसके बाद दूसरे मन्नतधारी चढ़ते है। बिलिडोज में 2 जगह गल का आयोजन हुआ। जहां 32 लोगों ने मन्नत पूरी की। करड़ावद बड़ी निवासी थावरिया डामोर ने बतायाकि गांव में दो जगह बाबागल का उत्सव मनाया। दोनों जगह मिलकर कुल 63 मन्नत उतारी गईं। मन्नतधारियों ने बाबागल से बली चढ़ाकर आशीर्वाद मांगा। समाजजनों ने जश्न मनाया।
40 फीट ऊपर बांध कर गल पर घुमाया
खरडुबड़ी. रात बारह बजे मेन बाजार में होली दहन किया गया। तड़वी भीला डामोर ने होली की पूजा के बाद दहन किया। सुबह गोट लेने के लिए ढोल नगाड़ों के साथ पूरे गांव में घूमने के लिए निकले।शाम को गल देखने के लिए आसपास के गामीणों टीचकिया, सेमलिया और बगई मैं गलबाबजी की मान छोडऩे के लिए हजारों की संख्या में देखने के लिए पहुंचे। गलबाबजी की मान को लेकर अपना ही वयक्ति को 40फ ीट ऊपर बांधकर गल पर घुमाया। आदिवासी समाज के लिए सबसे बड़ी मन्नत होती हैं जो होली के बाद उतारी जाती है।
गल की परिक्रमा लगाने वाले तड़वी राकेश भूरिया ने बताया कि बिलिडोज में झाबुआ में एक हजार से अधिक लोग गलबाबा पहुंचकर अपनी मन्नत उतारते हैं। वर्षो से समाज की परम्परा रही है की तड़वी सबसे पहले गल की परिक्रमा लगाकर बली देता है। इसके बाद दूसरे मन्नतधारी चढ़ते है। बिलिडोज में 2 जगह गल का आयोजन हुआ। जहां 32 लोगों ने मन्नत पूरी की। करड़ावद बड़ी निवासी थावरिया डामोर ने बतायाकि गांव में दो जगह बाबागल का उत्सव मनाया। दोनों जगह मिलकर कुल 63 मन्नत उतारी गईं। मन्नतधारियों ने बाबागल से बली चढ़ाकर आशीर्वाद मांगा। समाजजनों ने जश्न मनाया।
40 फीट ऊपर बांध कर गल पर घुमाया
खरडुबड़ी. रात बारह बजे मेन बाजार में होली दहन किया गया। तड़वी भीला डामोर ने होली की पूजा के बाद दहन किया। सुबह गोट लेने के लिए ढोल नगाड़ों के साथ पूरे गांव में घूमने के लिए निकले।शाम को गल देखने के लिए आसपास के गामीणों टीचकिया, सेमलिया और बगई मैं गलबाबजी की मान छोडऩे के लिए हजारों की संख्या में देखने के लिए पहुंचे। गलबाबजी की मान को लेकर अपना ही वयक्ति को 40फ ीट ऊपर बांधकर गल पर घुमाया। आदिवासी समाज के लिए सबसे बड़ी मन्नत होती हैं जो होली के बाद उतारी जाती है।