आदिवासी जिला झाबुआ में फ्लोराइड युक्त जल काफी गंभीर समस्या है। सरकार के लाख दावों के बावजूद आजादी के 75 साल के बाद भी यहां के लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं। प्रशासन द्वारा जमीनी स्तर पर काम करने के बजाय इस मामले में खानापूर्ति का नतीजा है कि आज भी जिले के सभी 6 ब्लॉक के 766 गांवों में फ्लोराइड युक्त पानी पीने से लोग फ्लोरोसिस, एनिमिया सहित हड्डी रोग से संबंधित कई गंभीर बीमारियों के चपेट में आ चुके हैं। फ्लोराइड युक्त पानी न केवल इंसानों के लिए जब पशुओं और फसलों के लिए भी घातक है।
केस 1.
मेघनगर ब्लॉक के गुंदीपाड़ा में रहने वाली अंकिता अनिल मेडा 4 वर्ष की है, इसके पैरों में टेढ़ापन है। सरपट दौडऩे की उम्र में फ्लोराइड ने जकड़ लिया है। घर के पास लगे हैंडपंप में हाइफ्लोराइड की मात्रा है। इस पानी को पीने से अंकिता को फ्लोरोसिस हो गया है। अंकिता के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। जिले में काम नहीं मिलने के कारण पूरा परिवार पलायन पर रहता है। पीथनपुर निवासी काली एवं भूरी बिलवाल दोनों चचेरी बहन ।
केस 2.
भूरी के माता-पिता को पोलियो है। भूरी एवं काली के पैर फ्लोराइड युक्त पानी पीने से टेढ़े हो गए हैं। धावलिया की वंती पारू डामोर एवं शिवा भी इस बीमारी की चपेट में हैं। मासूमों से उनका बचपन सिर्फ इस वजह से छिन गया कि सरकार उन तक शुद्ध पेयजल नहीं पहुंचा सकी है। पेयजल पहुंचाना तो दूर फ्लोराइड युक्त पानी ना पीने के लिए लोगों में जागरूकता भी नहीं दिखाई देती। विभाग को फ्लोराइड युक्त गांव को चिह्नित कर गांव के सभी लोगों को इस बीमारी के संबंध में जागरूक करने की आवश्यकता है। फिलहाल सभी जिम्मेदार शासन की योजनाओं का हवाला देकर फ्लोराइड पर नियंत्रण पाने का दावा कर रहे हैं। लेकिन धरातल पर जिले में पोस्ट खाली है, 4 जिलों में एक कंसलटेंट है।
आसपास के कई जिले आए चपेट में
धार, झाबुआ, आलीराजपुर और रतलाम को मिलाकर कुल 1484 गांव फ्लोरोसिस की चपेट में है। इसमें धार और झाबुआ की स्थिति ज्यादा गंभीर है। धार जिले में 802 गांव एवं झाबुआ में 680 गांव में फ्लॉरोसिस की पुष्टि हुई है। झाबुआ व अलीराजपुर जिले जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में जहां अधिक फ्लोराइड पाया जाता है वहां पर लोगों में कई लक्षण देखने को मिल रहे हैं, जैसे कि स्केलेटल फ्लोरोसिस डेंटल फ्लोरोसिस और नॉन स्केलेटल फ्लोरोसिस की समस्याओं से लोग जूझ रहे हैं।