अंधविश्वास के चलते महिलाओं को समझा जाता है डायन
झाबुआPublished: Dec 06, 2017 03:50:55 pm
ग्राम के तड़वी, सरपंच-सचिवों एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को किया जाए प्रशिक्षित
झाबुआ. घरेलू हिंसा विरोधी पखवाड़ा, बेटी जिंदाबाद अभियान एवं महिला अधिकार संदर्भ केन्द्र, भोपाल के तत्वावधान में एक्शन एंड एसोसिएशन द्वारा डायन कुप्रथा, महिला हिंसा आदि से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कर समाज में व्याप्त इन बुराइयों से निपटने के लिए सुदृढ़ एवं प्रभावी रणनीति तैयार करने के लिए एक दिवसीय जिला स्तरीय परिसंवाद कार्यशाला का आयोजन बीआरसी भवन में किया गया। इसमें स्थानीय जन प्रतिनधियों सहित जिला पंचायत, महिला सशक्तिकरण, विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग, जिला महिला आयोग, पुलिस प्रशासन आदि विभागों के अधिकारी, स्थानीय स्वयंसेवी सस्थाओं के सदस्य और मीडिया प्रतिनिधि बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कार्यशाला में मुख्य अतिथि भाजपा जिला अध्यक्ष दौलत भावसार एवं जिला सलाहकार बोर्ड (डीपीए) के अध्यक्ष यशवंत भंडारी, विशेष अतिथि एमएल फुलपगारे तथा कार्यशाला की अध्यक्षता महिला आयोग की सखी अर्चना राठौर ने की।
राज्य समन्वयक निलोफर खान ने कार्यशाला के उद्देश्य की जानकारी प्रतिभागियों को दी। अध्यक्षता कर रहीं अर्चना राठौर ने जिले में व्याप्त डायन कुप्रथा और महिला हिंसा जैसी घटनाओं को रोकने के लिए जिला प्रशासन और अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा प्रभावी रणनीति बनाकर एकजुट होकर चलने की अपील की।
हत्या कर दी जाती है
मुख्य अतिथि भावसार ने बताया, अशिक्षा एवं अंधविश्वास के कारण हमारे जिले में एवं विशेषकर आदिवासी अंचल में किसी महिला को डायन बताकर उसे प्रताडि़त किया जाता है। यहां तक की उनकी हत्या भी कर दी जाती है। यह मानवीय मूल्यों पर बहुत बड़ा आघात है। हमें इस दिशा में जागरूकता लाना होगी। मुख्य वक्ता भंडारी ने कहा, सभ्य एवं शिक्षित समाज में ऐसी घटनाएं नहीं होती हैं, परंतु वे क्षेत्र जहां पर अनपढ़ ग्रामीण जो अंधविश्वास के शिकार होते हैं, वे किसी महिला को डायन समझकर उसके साथ अत्याचार करते हैं।
कई बार किसी महिला की मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने पर भी ग्रामवासी उसे डायन समझ बैठते हैं। वास्तव में डायन एक भय का नाम है। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा, डाकन जैसे शब्द का प्रयोग केवल महिलाओं के लिए ही क्यों किया जाता है, जबकि पुरुष को कभी भूत या पिशाच नहीं माना गया। भंडारी ने सुझाव दिया कि प्रत्येक जिले में महिला सशक्तिकरण विभाग को ऐसी पीडि़त महिलाओं का मनोवैज्ञानिक एवं मानसिक उपचार नि:शुल्क करना चाहिए। ग्राम के प्रमुख तड़वी, सरपंच आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं एवं सचिव की भी विकासखंड स्तर पर कार्यशाला आयोजित कर उन्हें प्रशिक्षण देकर बताया जाए कि इस प्रकार की कोई घटना यदि किसी गांव में होती है तो उसे तुरंत रोकने के प्रयास किए जाना चाहिए और ऐसी महिलाओं को पूरा संरक्षण एवं जीवन-यापन की व्यवस्था की जाना चाहिए।
सक्रिय रणनीति बनाएं
जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी आरएस जमरा तथा महिला सशक्तिकरण अधिकारी आरएस बघेल ने कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों से आए विभिन्न सुझावों को गंभीरता से लेते हुए जिले में व्याप्त डायन कुप्रथा, महिला हिंसा आदि मुद्दों के संबंध में जिलास्तर पर प्रभावी, सक्रिय और संवेदनशील रणनीति बनाकर इन सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध हर संभव प्रयास करने का आश्वासन दिया। इस दौरान इन कुप्रथाओं को दूर करने के लिए उपस्थित सभी लोगों द्वारा संयुक्त रूप से संकल्प भी लिया गया। इसके साथ ही बेटी बचाओ आंदोलन के पोस्टर का विमोचन भी अतिथियों ने किया। कार्यशाला में विभिन्न स्वयंसेवा संस्थाओं के कमलेश राठौड़, मनोज वसुनिया, बेनेडिक्ट डामोर, रामप्रसाद वर्मा, कैलाश वसुनिया, अभिभाषक मुकेश बैरागी, अखिलेश बाल्यान, रणवीर सिसौदिया, उमेश मेड़ा, राजू निनामा, कल्पना यादव, चाइल्ड फंड से अनिल कटारा, पुष्पा गणावा, अनिल बर्मन सहित अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं के पदाधिकारियों ने अपने विचार व्यक्त किए। संचालन वसुधा विकास संस्था के अरुण शर्मा ने किया।