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झालावाड़

राजस्थान के इस दुर्ग में कर दिए करोड़ों रुपए खर्च, फिर भी नहीं सुधरे हालात

पर्यटन दिवस विशेष: आगंतुकों को नहीं मिलती सुविधाएं, टिकट लेने के बाद भी मायूसी हाथ लग रही

झालावाड़Sep 27, 2022 / 03:52 pm

Abhishek ojha

राजस्थान के इस दुर्ग में कर दिए करोड़ों रुपए खर्च, फिर भी नहीं सुधरे हालात

राजस्थान के इस दुर्ग में कर दिए करोड़ों रुपए खर्च, फिर भी नहीं सुधरे हालात

झालावाड़. उत्तर भारत का एक मात्र जल दुर्ग गागरोन अपनी बेजोड़ बनावट के कारण विश्व पटल पर अपना नाम दर्ज कराने में सफल हुआ है, लेकिन इन दिनों देश का हेरिटेज स्थल प्रशासन और पर्यटन विभाग की अनदेखी के चलते दुर्दशा का शिकार हो रहा है।
सालों पुराना जल दुर्ग का पुरा वैभव खंडहर होने की कगार पर है, बावजूद इसके जिम्मेदार इसकी अनदेखी करते जा रहे हैं। जबकि दुर्ग के बिना नींव व नुकीले पत्थरों पर बना होने के कारण इसे वर्ष 2013 में विश्व विरासत की सूची में शामिल किया। लेकिन दुर्ग में आने वाले पर्यटकों को यहां आकर नहीं लगता कि वह विश्व विरासत सूची में शामिल दुर्ग में खड़े हैं। यहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है तो पीने को पानी भी नसीब नहीं होता। जगह-जगह कचरा फैला हुआ, दर्ग झाडिय़ों व घास से अटा हुआ है। इस अनदेखी से दुर्ग का सौन्दर्य व ऐतिहासिक छवि धूमिल हो रही है, लेकिन शासन व प्रशासन को इससे कोई सरोकार नहीं है।
इस विशेषता के चलते किया था शामिल
गागरोन दुर्ग के निर्माण को 800 साल से अधिक हो गए हैं। इसके तीन ओर से कालीङ्क्षसध और आहू नदी का पानी बहता है। दुर्ग की नींव नहीं है तथा यह नुकीले पत्थरों पर टिका हुआ है। इसकी इन्हीं विशेषताओं को देखते हुए 21 जून 2013 को यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था। दुर्ग करीब 350 फीट लंबा है और यह गिरी और जल दुर्ग दोनों ही श्रेणियों में आता है। इन्हीं सभी विशेषताओं के चलते राजस्थान के पांच अन्य दुर्गोंं के साथ इसे भी विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।
मायूस हो रहे हैं पर्यटक
दुर्ग में करोड़ों रुपए के काम हो चुके हैं, लेकिन पर्यटकों के अल्पाहार व शीतल पेय की कोई व्यवस्था नहीं है। दुर्ग में आने वाले पर्यटकों को 50 रुपए का टिकट लेने के बाद मायूसी हाथ लग रही है।
महल भी होने लगा क्षतिग्रस्त
दुर्ग में सफाई नहीं होने से चारों ओर झाडिय़ां उग गई है। वहीं लाइट की केबल व बॉक्स खुले पड़े हैं। चोर सोलर लाइट चुरा ले गए। दुर्ग का मुख्य दरवाजा पूरी तरह से काई छाने से काला पड़ा हुआ है। ऐतिहासिक जौहर कुंड में बड़ी-बड़ी झाडियां उगी हुई है। सबसे बड़ी बात ये है कि अब तो राजा का महल भी क्षतिग्रस्त होने लगा है।
पानी में गए करोड़ों
दुर्ग में आज से करीब तीन साल पहले प्रथम चरण में करीब 2.84 करोड़ रुपए की लागत से दुर्ग में प्लास्टर सहित दीवारों की मरम्मत व दूसरे चरण में करीब 70 लाख रुपए की लागत से सोलर लाइट, बैंच, वाटर कूलर आदि लगाए गए, लेकिन ये सार-संभाल नहीं होने से बदहाल होते जा रहे हैं। यहां बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले, चकरी आदि की सुविधा मुहैया नहीं कराई गई।
दुर्ग का इतिहास ऐतिहासिक रहा है, यहां दो जौहर हुए तो कई युद्ध भी हुए हैं, लेकिन पर्यटक गाइड के अभाव में यह जानकारी बताने वाला कोई नहीं है।

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