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झालावाड़

12 महीने चलने वाली प्याऊ पर शीतल जल के साथ छाया, म्यूजिक और झूले का आनंद

गर्मी के मौसम में राहगीरों को छाछ का भी वितरण, महाराणा प्रताप सर्किल पर समाज सेवा

झालावाड़Mar 13, 2024 / 10:04 pm

jagdish paraliya

Enjoy shade, music and swing with cool water on the 12 month old pew.

सुनेल के महाराणा प्रताप सर्किल पर संचालित प्याऊ पर पानी पीते हुए राहगीर।

सुनेल. इंसानियत की भावना और आमजन की सेवा का भाव हो तो कोई कैसे मानवता की सेवा से पीछे हट सकता है। फिर सेवा करने का माध्यम कोई भी हो। ऐसा ही सेवा सुनेल कस्बे के समाजसेवी गोविंद धाकड़ द्वारा की जा रही है। वे पिछले 7 वर्षो से अपने खर्च पर 12 महीने प्याऊ का संचालन कर रहे है, जहां हजारों की संख्या में राहगीर प्रतिदिन अपनी प्यास बुझा रहे हैं। इस प्याऊ पर भीषण गर्मी में शीतल जल के साथ ठंड़ी छाछ का भी राहगीर आनंद लेते है। यहीं नही इस प्याऊ पर राहगीरों को बैठने के लिए बैंच, म्यूजिक और छोटे बच्चें झूले का भी लुफ्त उठा रहे हैं। समाज सेवी है धाकड़ जो कि विगत 7 वर्षो से बारहमासी प्याऊ का संचालन कर रहे है। सिर्फ प्याऊ ही नहीं लोगों के लिए छाया, बच्चों के लिए झूले व म्यूजिक सिस्टम का भी इंतजाम किया हुआ हैं। यह सारी व्यवस्था सुनेल के महाराणा प्रताप तिराहे पर स्थित प्याऊ पर की गई है। यह चौराहा तीन मार्गो को जोड़ता है। भवानीमंडी-झालरापाटन व अन्य मार्ग की बसें इस चौराह पर रूकती है। यहां पर बस यात्रियों के साथ आने वाले अन्य वाहन चालक भी रूकते है और यहां कुछ देर बैठकर अपनी प्यास बुझाते है।
मां की स्मृति में शुरू की थी प्याऊ
ईश्वर और मॉं के आर्शीवाद से प्रेरणा मिली और में इस सेवा कार्य मैं माध्यम बन गया। यहां पर आये लोगों के चेहरों पर सुकुन और तृप्ति के भाव देख कर मुझे ना सिर्फ संतोष व प्रसन्नता का अहसास होता है। वरन आत्मबल भी बढ़ता है। गोविंद धाकड़ बताते है कि 7 वर्ष पूर्व उनकी माता दरियाव बाई मंडलोई का देहांत हो गया था। उनकी स्मृति में वे कोई समाज सेवा का जुड़ा कार्य करना चाहते थे। सभी ने अलग-अलग राय दी। किसी ने अस्पताल व स्कूल में दान की सुझाव दिया। लेकिन एक बार महाराणा प्रताप सर्किल पर रूकना हुआ तो यहां लोगों को पानी के लिए परेशान होते देखा। बस यही से आइडिया आया और प्याऊ शुरू करने का निर्णय लिया और सात साल से प्याऊ लगातार संचालित है।
मनुष्य ही नहीं मवेशी व पशु की प्यास बुझाते है
गोविन्द धाकड़ ने सिर्फ मनुष्य ही नहीं वरन पशु पक्षी की पीड़ा को भी समझा। उन्होंने राहगीरों के लिए प्याऊ के साथ मवेशियों के लिए खैर बनवाई। इसके अलावा अपनी प्याऊ सहित आस-पास के क्षेत्रों में पक्षियों के लिए परिण्डे का बंधवाए। जहां दिनभर पक्षियों की चहचाहट भी सुनी जा सकती है।
प्याऊ बंद नहीं हो इसलिए कर्मचारी लगाया
इस प्याऊ के माध्यम से लोगों के लिए कुछ करने का सौभाग्य मिला है। यह प्याऊ बंद नहीं हो, इसके लिए मानदेय पर कर्मचारी रखा गया है। सुबह 8 से रात 10 बजे तक प्याऊ संचालित होती है। प्रतिदिन मटकों की सफाई होती है और उनमें शीतल जल भरवाया जाता है।

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