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मुकुंदरा के जंगल में विराजमान है मां काली कंकाली, अखंड ज्योत जलती है यहां

झालावाड़. गागरोन दुर्ग से करीब 11 किलोमीटर दूर मुकुंदरा के जंगल में लक्ष्मीपुरा गांव में मां काली कंकाली विराजमान है। यह प्राचीन मंदिर लोगों की आस्था केन्द्र है। स्थानीय निवासी इसे ‘काली कंकाली देवी’ का मन्दिर कहते है। इतिहासकार ललित शर्मा के अनुसार लक्ष्मीपुरा गांव के अन्त में यह मन्दिर राजपूती स्थापत्य का नमूना है। […]

झालावाड़Oct 10, 2024 / 11:21 pm

jagdish paraliya

  • झालावाड़. गागरोन दुर्ग से करीब 11 किलोमीटर दूर मुकुंदरा के जंगल में लक्ष्मीपुरा गांव में मां काली कंकाली विराजमान है। यह प्राचीन मंदिर लोगों की आस्था केन्द्र है। स्थानीय निवासी इसे ‘काली कंकाली देवी’ का मन्दिर कहते है।
झालावाड़. गागरोन दुर्ग से करीब 11 किलोमीटर दूर मुकुंदरा के जंगल में लक्ष्मीपुरा गांव में मां काली कंकाली विराजमान है। यह प्राचीन मंदिर लोगों की आस्था केन्द्र है। स्थानीय निवासी इसे ‘काली कंकाली देवी’ का मन्दिर कहते है।
इतिहासकार ललित शर्मा के अनुसार लक्ष्मीपुरा गांव के अन्त में यह मन्दिर राजपूती स्थापत्य का नमूना है। मन्दिर के गर्भगृह में 3 फीट के सिंह पर सवार दुर्गा की मूर्ति है जिसे ‘काली कंकाली देवी’ का रूप मानकर पूजा जाता है। गर्भगृह के ऊपर एक सुन्दरगुम्बद है जिस पर धर्मध्वज दण्ड लगा है। गुम्बद के आस-पास दो सुन्दरछत्रियां बनी है। गर्भगृह में देवी चतुर्बाहू है तथा वे अपने हाथों में ढाल, तलवार, गदा और कमल धारण किए हुए है। देवी के शीश पर कीरीट मुकुट का अंकन है तथा वे पूर्ण राजसी आभूषणों से सजी धजी है। देवी के शीश पर सुन्दर चुनरी, देह पर साड़ी तथा हाथों में कंगन है। मूर्ति के दर्शन करते ही मन में भक्ति व आस्था का भाव उमड़ते है। गर्भगृह के सुन्दर द्वार के ऊपर खड़े गणेशजी की एवं द्वार को नीचे दोनों ओर जलघट हाथ में लिए दो-दो परिचारिकाओं की मूर्तियां है। मन्दिर का गर्भगृह काफी सजा धजा और विभिन्न प्रकार के रंगीन कांच से अलंकृत है जिन पर लाइट की चमक पड़ने से देवी मूर्ति का सौन्दर्य सबको आकर्षित करता है।
हर रविवार होती है विशेष पूजा

गर्भगृह के बाहर का अन्तराल (चौक) 16 कलाओं पर आधारित है। मन्दिर में गर्भगृह और परिसर में भक्तों द्वारा सुन्दर टाइल्स लगा कर मन्दिर के बाहर पानी की टंकी स्थापित की जाने से श्रृद्धालुओं के लिए शीतल जल और बैठने की आरामदायक व्यवस्था हो गई है। मन्दिर के पुजारी घनश्याम सहरिया ने बताया कि वर्ष की दोनों नवरात्रि में नौ दिन तक देवी की अखण्ड ज्योत जलती रहती है। देवी के दर्शनार्थ झालावाड़ से ही नहीं वरन् कोटा, बारां के अलावा रतलाम से भी श्रद्धालु आते हैं। रविवार की शाम को देवी की विशेष पूजा होती है जिसमें बाहर के भक्तों के साथ लक्ष्मीपुरा, प्र्रेमपुरा के ग्रामीण भी मौजूद होते है।
पूर्व महाराव उम्मेदसिंह ने बनवाया मंदिर

  • इतिहासकार ललित शर्मा के अनुसार यह देवी मन्दिर 18वीं सदी में कोटा महाराव उम्मेद सिंह द्वारा बनवाया गया था। इसमें 18वीं सदी की दुर्गा देवी की मूर्ति स्थापित है। मन्दिर के बाहर ही 18वीं सदी की एक वीर हनुमान की दानव को पैर से दबाते हुए सुन्दर मूर्ति रखी है। यह मन्दिर एक मजबूत पाषाणी परकोटे से घिरा हुआ हैं जिसके मध्य में कोटा राज्यकालीन छोटा पूर्व मुखी प्रवेश द्वार है। मन्दिर परिसर में भैरव बाबा और बीजासन माता की पूजनीय मूर्तियां भी स्थापित है जिनकी पूजा देवी के साथ होती है।

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