प्रथम यूनिट में एक मात्र सर्जन डॉ. बी.सी. मेवाडा के होने से वे राउंड भी करते हैं, इमरजेंसी ऑपरेशन भी करते हैं। ऐसे में ओपीडी पूर्णतया प्रभावित रहती है। वहीं अन्य विभाग में तो पीजी रेजीडेंट के होने से इतनी परेशानी नहीं होती है, लेकिन सर्जरी विभाग में पीजी रेजीडेंट नहीं होने से परेशानी ज्यादा आती है।
सर्जरी विभाग की विडंबना यह है कि यहां मरीज को एमडी या मेडिकल ऑफिसर देखता है। उसके बाद विशेषज्ञ से परामर्श व अन्य जांचों के लिए मेडिकल कॉलेज में रैफर कर देते हैं, लेकिन यहां एमबीबीएस के इंटर्न छात्र उन्हें देखते है। ऐसे में उन्हें पता नहीं कि कौनसी जांच करवानी है क्या करवाना है। वह वही दवाई फिर से लिख देते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों के चिकित्सक ने लिख रखी है। यहां आकर भी मरीज फिर से वही दवाई लेकर गांव चला जाता है। ऐसे में ओपीडी में आने वाले करीब 200-250 मरीज निराश ही लौट रहे हैं।
मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग की शेष तीन यूनिट में पर्याप्त विशेषज्ञ हैं, ऐसे में इन यूनिट से दो प्रोफेसर व सहायक प्रोफेसरों को यूनिट प्रथम में लगाया जा सकता है। इससे यहां आने वाले मरीजों को भी हर समय परामर्श मिल सकेगा तो वह भर्ती भी कर सकेंगे। यहां द्वितीय यूनिट में प्रो. जी.एल. दशोरा, सहायक आचार्य डॉ. रेखा पाटीदार, डॉ. हुकमचन्द मीणा, तीसरी यूनिट में डॉ. अशोक शर्मा एचओडी, डॉ. अखिलेश,डॉ.आर.पी. मीणा, चौथी यूनिट मेें डॉ.संजय पोरवाल, सह आचार्य डॉ.योगीराज नैनपुरिया, डॉ. शकिल खान आदि हंै। इन सर्जन में से किसी भी दो को प्रथम यूनिट में लगाकर फिलहाल नए सर्जन आने तक कमी को पूरा किया जा सकता है। ताकि ओपीडी में आनेवाले मरीजों को सही परामर्श मिल सके।
पता करेंगे सर्जन क्यों नहीं बैठ रहे हैं, जो भी होगा समाधान करवाया जाएगा। सही है ग्रामीण दूर से आते हैं तो परेशानी तो होती है।
डॉ.आर.के.आसेरी, डीन मेडिकल कॉलेज, झालावाड़
चिकित्सकों की कमी सभी यूनिट में है, उसी दिन वार्ड व कोई इमरजेंसी आने पर सीनियर फैकल्टी के वहां जाने पर ओपीडी में तो परेशानी होती है। हमारे विभाग में पीजी भी नहीं होने से परेशानी ज्यादा आती है। फिर भी जो भी होगा समाधान करेंगे।
डॉ. अशोक शर्मा, विभागाध्यक्ष सर्जरी विभाग, मेडिकल कॉलेज झालावाड़