विश्व प्रसिद्ध गागरोन जल दुर्ग गागरोन को 2013 में विश्व विरासत सूची में शामिल तो कर लिया गया है। लेकिन विभाग व सरकार ने इस दर्ज के हिसाब प्रयास नहीं किए है। यहां सरकारी प्रयास किए जाएं तो रोप वे बनाया जा सकता है। यहां मुकुदंरा हिल्स टाइगर रिजर्व में दो बाघ छोडऩे से इस क्षेत्र को सवाईमाधोपुर की तर्ज पर विकसित किया जा सकता है। यहां की प्राकृतिक और भौगोलिक संरचना इस स्थान को ख्याती दिलाने में पर्याप्त है। इस दिशा में सही प्रयास हो तो यहां देशी-विदेश सहित हजारों की संख्या में पर्यटकों की आवाजाही हो सकती है।
उपेक्षित हो रही है बौद्धकालीन गुफाएं-
जिले में स्थित चौथी से सातवीं शताब्दी की अदभूत बौद्ध गुफाएं उपेक्षित है। जबकि ये महाराष्ट्र की अजंता-एलोरा की गुफाओं के समकक्ष मानी जाती है। बावजूद इसके सरकारी मशीनरी व राजनेताओं का इनकी ओर कोई ध्यान नहीं है। ये गुफाएं हीनयान सम्प्रदाय से संबंधित गुफाएं है। यह बौद्ध शिक्षा का केन्द्र रही है। यहां अजंता की तर्ज की द्विमंजिला गुफाए है, इन्हें पर्यटन के लिए बौद्ध सर्किट के रुप में विकसित किया जा सकता है। संसाधन व होटल आदि बनाए जाएं तो यह विकसित हो सकती है।
जिले के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यटक स्थलों पर काम तो हुए है, लेकिन पर्यटक यहां तक कैसे पहुंचे इस दिशा में सरकारी स्तर पर कोई सार्थक प्रयास नहीं हुए है। जो यहां आने वाले पर्यटकों को जिले के पर्यटन स्थलों के बारे में बता सके। उदयपुर, चितौड़, कोटा, बूंदी तक बड़ी संख्या में पर्यटकों आते हैं। अगर ठीक से योजना बते तो इन पर्यटकों को झालावाड़ जिले के पर्यटन स्थलों की ओर आकर्षित किया जा सकता है। यदि चीन, जापान, म्यांमार आदि में दार्शनिक व आधुनिक एप्रोच से संपर्क हो तो बौद्ध धर्म को मनाने वाले लोग यहां आ सकते हैं। स्थानीय राजनेताओं व जिलाप्रशासन यदि प्रयास करें तो इनकी प्रसिद्धि विदशों में हो सकती है।
बन सकता है पर्यटन सर्किट-
जिले में प्रसिद्ध चन्द्रभागा नदी व तट पर प्रसिद्ध चन्द्रमोलेश्वर मंदिर है। रटलाई में अल्टा मंदिर,उन्हेल में नागेश्वर पाŸवनाथ जैन मंदिर, चांदखेड़ी में आदिनाथ जैन मंदिर, छापी बांध के ऊपर दलहनपुर महल, महू के महल, असनावर के निकट रातादेवी मंदिर व टांडी सोहनपुरा के पास पौराणिक छीनहरी-पिनहरी का मंदिर, कायावर्णेश्वर महादेव डग, झालरापाटन में नवलखा दुर्ग, सूर्य मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, भूतेवर मंदिर, शांतिनाथ का जैन मंदिर, रामकुंड बालाजी मंदिर,कामखेड़ा हनुमान मंदिर सहित कई दर्शनीय व प्राकृतिक स्थल है। जिन्हें कोटा,बूंदी, चितौड़, उदयपुर आदि को जोड़कर पर्यटक सर्किट बनाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए सरकार व स्थानीय जन प्रतिनिधियों की इच्छाशक्ति की जरुरत है।
1. प्राचीन सांस्कृतिक स्थलों की विरासत स्थली है झालावाड़-
जिले में एक ओर चन्द्रभागा के शिव मंदिर तो दूसरी ओर वल्लभ संप्रदाय का द्वारकाधीश मंदिर है। यहां कोलवी की गुफाएं, विश्वविरासत सूची में शामिल गागरोन दुर्ग, मीठे महावली की दरगाह जैसे कई मनोरम स्थल जिले में है। इसके बावजूद झालावाड़ जिला पर्यटन के क्षेत्र में उचित स्थान नहीं पा सका है। इनस्थानों तक सड़कें, ठहरने की सुविधा व संसाधन हो तो जिला पर्यटन का केन्द्र बन सकता है।
डॉ. सज्जन पोसवाल, विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग, पीजी महाविद्याल, झालावाड़
2.जिले में पर्यटन की काफी संभावना है। यहां धार्मिक व प्राकृतिक दर्शनीय स्थल काफी सारे हैं। लेकिन उनका इंफ्रास्ट्रक्चर की दिशा में उचित काम नहीं हो रहा है।अब रेल की सुविधा है। लेकिन जिले के स्थलों के हॉर्डिग्स जयपुर सहित ऑनलाइन साइटों पर उचित प्रचार-प्रसार नहीं हो पा रहा है। पर्यटन व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए पर्यटक गाइड व होटल मालिकों को जोड़कर जिले को पर्यटन सर्किट से जोडऩा चाहिए। कई काम हुए है, लेकिन उनके मुकाम तक नहीं पहुंचाया गया है।
दिनेश सक्सेना, अध्यक्ष पर्यटन विकास समिति,झालावाड़
3. पर्यटन समिति की बैठक हुई है, उसमे ंनिर्णय लिया गया है कि जिले में पर्यटन को विकसित करने के लिए आगामी दिनों में नवम्बर माह में लगने वाले चन्द्रभागा मेले में होटल मालिक व गाइड के साथ बैठक की जाएगी।जिले के पर्यटक स्थलों के प्रचार-प्रसार के लिए ऑनलाइन साइटों से संपर्क किया जा रहा है।
सिद्धार्थ सिहाग, जिला कलक्टर, झालावाड़।