ऐसी थी स्थिति
समायरा की मां सितारा बताती है कि समायरा उनकी तीसरी संतान है। इससे पहले हुये उनके दो बच्चे नहीं रहे। वह बताती हैं कि जब समायरा गर्भ में थी तो वह अकेली नहीं थी उसके साथ एक और बच्चा था, लेकिन जन्म के समय दूसरे बच्चे की मौत हो गई और समायरा बच गई। सितारा बताती है कि उनकी कोख में कोई भी बच्चा बचता नहीं था। बहुत दुआओं के बाद जब समायरा कोख में आई तो उन्होंने टीके तो लगवाए लेकिन प्रसवपूर्व जांचों में सबसे प्रमुख अल्ट्रासाउंड की जांच होती है वह नहीं कराई। वह इसी सोच में रही कि वह एक-दो दिन में करा लेंगी लेकिन जब उनका छठवां महीना चल रहा था तो अचानक उन्हें प्रसव का दर्द हुआ। उनके घर के लोग उनको गांव के स्वास्थ्य केंद्र पर लेकर गए लेकिन वहां उन्हें तुरंत झांसी के लिए भेज दिया गया।
सितारा ने झांसी जिला महिला अस्पताल में सबसे पहले एक लड़के को जन्म दिया, उस समय उन्हें पता चला कि उनके गर्भ में दो बच्चे हैं। 6 माह में बच्चे का होना, बच्चा और मां दोनों के लिए हानिकारक होता है। लड़के के जन्म के बाद उनकी बिगड़ती हालत को देखकर उन्हें मेडिकल कॉलेज में रिफ़र किया गया। वहां उन्होंने समायरा को जन्म दिया। सितारा बताती है कि उनका लड़का एक दिन एसएनसीयू में रहकर खत्म हो गया था। अब बस समायरा थी जिसके लिए सब दुआ कर रहे थे। करीब डेढ़ माह तक समायरा एसएनसीयू में रही, समायरा का वजन एक किलो से भी बहुत कम था, इस कारण उसे परेशानियां झेलनी पड़ रही थीं। डेढ़ माह के बाद डॉक्टर ने समायरा को उसके मां-बाप के हाथ सौंप दिया और उनको बोला कि प्रत्येक महीने उसे जांच के लिए जरूर लेकर आए।
सितारा बताती है कि डॉक्टर ने जैसे-जैसे करने को बोला हम सब ने वैसा ही किया। करीब एक साल तक समायरा को जांच के लिए लेकर आए। 9 जनवरी 2019 को समायरा ने अपनी उम्र का एक साल पूरा कर लिया और इस बार जब सितारा डॉक्टर के पास उसे जांच के लिए लेकर आई तो डॉक्टर ने भी उसको अब आगे आने को मना कर दिया और कहा कि जब किसी तरह की परेशानी हो तब ही जांच के लिए लेकर आएं। सितारा आज अपनी हंसती-खेलती बच्ची को देखकर काफी खुश है। वह कहती है कि मेरे दो बच्चों के इंतकाल के बाद हम सब बहुत डर गए थे समझ ही नहीं आता था कि क्या किया जाए। लेकिन मेरी बच्ची आज सही और स्वस्थ है। मैं सबका शुक्रिया करती हूं जिनकी वजह से आज मेरी बेटी मेरी गोद में हंस खेल रही है।
मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ॰ ओमशंकर चौरसिया ने बताया कि सिक न्यू बोर्न केयर यूनिट(एसएनसीयू) में जनवरी 2018 से दिसम्बर 2018 तक लगभग 46 बच्चे ऐसे आए जो एक किलो से कम वजन के थे, इनमें 40 से 50 प्रतिशत ही बच्चे हैं जो अभी जीवित है। उनके अनुसार 1 किलो से कम वजन के जन्में बच्चों में बहुत कम आसार होता है कि वह बच्चे बच पाये। कम वजन के बच्चों में सही से शारीरिक और मानसिक विकास नही हो पाता, जिसके कारण उनका जीवित रहना बहुत मुश्किल होता है। कई बार ऐसे बच्चे जीवित भी रहते है तो क्या पता वो विकलांग हो जाए। कम वजन के बच्चे प्राय: वही होते हैं जो कम दिन में पैदा हो जाते है। कम दिन में प्रसव न हो इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि गर्भवती महिलाएं समय से कम से कम चार जाँचे अवश्य कराये। जांच के बाद डॉक्टर के द्वारा दिये गए निर्देशों को जरूर माने। ये सिर्फ बच्चे की ही नहीं बल्कि इस स्थिति में कभी-कभी माताओं की जिंदगी पर भी बन आती हैं। अगर हम यह कर पाते है तब कही जाकर हम शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर को रोक पाएंगे।
क्या है सिक न्यू बोर्न केयर के मानदंड
ऐसे बच्चे जिन्हें पैदा होने के बाद चिकित्सीय उपचार की आवश्यकता होती है, जैसे- जन्म से पहले पैदा हो गए हों, पैदा होने के बाद नहीं रोया हो, कम वजन का हो, जन्म के समय से पीलिया हो, सांस लेने में तकलीफ हो, पेट में तनाव या सूजन हो, शुगर बढ्ने से बच्चे को पेशाब ज्यादा हो रही हो, पल्स बढ़ी हो, ऑक्सीज़न की कमी हो, मां का दूध नहीं पी पाता हो, गंदा पानी पी लिया हो, हाथ-पैर नीला पड़ गया हो एवं जन्म के तुरंत बाद झटके आ रहे हो उन्हें सिक न्यू बोर्न यूनिट वार्ड में भर्ती कर ठीक किया जाता है।