इन बातों का भी रखें ध्यान डा॰ अनिल मंगल ने कहा कि कई नवप्रसूता (धात्री) माताओं को दूध न बनने की शिकायत रहती है। ऐसी माताएं सतावरी पौधे का चूर्ण ले सकती हैं। इससे उनमें दूध की उत्पादकता बढ़ जाती है। बच्चों के खानपान पर डा मंगल का कहना है कि आज के समय में जो बच्चे टीवी या मोबाइल देखकर खाना खा रहे हैं वह उनके लिए बहुत हानिकारक है। इससे न ही उनका मानसिक और न ही उनका शारीरिक विकास होता है।
आयुर्वेद की भूमिका सराहनीय बाल विकास कार्यक्रम अधिकारी स्नेह गुप्ता ने बताया कि पोषण पखवाड़ा के अंतर्गत आयुर्वेद की भूमिका बहुत ही सराहनीय है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि ज्यादा से ज्यादा घरेलू चीजों का इस्तेमाल पोषण के लिए कर सकें। साथ ही यदि कोई बीमार पड़ता है तो उसके लिए आयुर्वेद में बहुत सी ऐसी जड़ी बूटियां हैं, जिनके पौधे हम अपनी पोषण वाटिका में लगा सकते हैं। वह बताती हैं कि हर एक चीज को कब, कहां, कैसे और क्या खाना है, इस पर ध्यान देना जरूरी है।
ये है पोषण पखवाड़ा का उद्देश्य 8 मार्च से शुरू हुये पोषण पखवाड़ा का इस बार उद्देश्य है- पोषण को एक आंदोलन की तरह चलाये जाना, ताकि इसकी पहुंच अंतिम व्यक्ति तक हो। इसी के अंतर्गत सिजवाहा में ग्राम प्रधान शिशुपाल यादव की अध्यक्षता में पोषण में आयुर्वेद की सहभागिता के बारे में स्थानीय महिलाओं, आशा, एएनएम और आगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को जागरूक किया गया। इसके साथ ही माताओं और बच्चों को भी बताया गया कि वह ऐसा क्या खायें जो उनके लिए लाभकारी हो। इस कार्यक्रम में सिजवाहा की सुपरवाइजर अर्चना, आशा, एएनएम और ग्रामीण महिलाएं उपस्थित रहीं।