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गुजरात और महाराष्ट्र में दुग्ध क्रांति लाने वाला हरा चारा बुंदेलखंड में रोकेगा अन्ना प्रथा, किसानों की समस्या होगी दूर

locationझांसीPublished: May 29, 2021 01:35:18 pm

Submitted by:

Neeraj Patel

– बुन्देलखण्ड के किसानों की दूर हो जाएगी अन्ना प्रथा की बड़ी समस्या

Green fodder

Green fodder of bring milk revolution will stop Anna system

झांसी. उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड के किसानों के लिए आज के समय में अन्ना प्रथा सबसे बड़ी समस्या बन गई है। बुन्देलखंड के हर जिलों में यह अन्ना प्रथा कूप्रथा में बदल गई। अन्ना पशुओं द्वारा प्रदेश के कुछ हिस्सों में किसानाें की फसलों को बड़ी मात्रा में अत्याधिक नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जिससे उनकी आमदनी लगातार घटती जी रही है। एक तरफ किसान अन्ना प्रथा से परेशान है, तो दूसरी तरफ उनका खेती किसानी से मोह भी भंग होने की कगार पर आ गया हैं और वह रोजगार की तलाश में शहर की ओर पलायन करने पर मजबूर हो रहे है। क्योंकि अन्ना जानवरों के कारण किसान अपनी फसल अच्छे से नहीं कर पा रहे हैं। अन्ना जानवरों द्वारा किसानों की फसल को चट कर दिया जाता है। जिससे किसानों को खेती की पैदावार में गिरावट देखने को मिलती है।

बुंदेलखंड के बांदा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. यूएस गौतम बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में अन्ना प्रथा के प्रमुख कारणाें में से एक पशुओं को वर्ष भर चारे की कमी बनी रहना है। लूसर्न चारे की खेती से इस कमी से हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है। बुन्देलखण्ड में चारे की फसल लुसर्न की खेती करके इससे वर्ष भर चारे की व्यवस्था की जा सकती है। बस आवश्यकता है कि किसानों द्वारा इस चारे की फसल को मुख्य फसल के रूप में सम्मिलित कर लिया जाए, तो अन्ना जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था भी हो जाएगी और बुन्देलखंड समेत प्रदेश भर के किसानों को अन्ना जानवरों से होने वाली परेशानियों से भी छुटकारा मिल सकता है।

कुलपति डा. गौतम का कहना है कि मई माह की इस भीषण गर्मी में भी हरी-भरी यह लुसर्न की फसल आपका मन लुभाएगी। महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्याें में दुग्ध क्रांति लाने वाली लुसर्न की फसल का बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में स्थित समन्वित कृषि प्रणाली (आईएफएस) इकाई में बुन्देलखण्ड में संभावनाओं को लेकर प्रक्षेत्र पर प्रयोग किया जा रहा है। विश्वविद्यालय के आईएफएस शोध इकाई के वैज्ञानिक डा. अनिकेत कोल्हापुरे द्वारा किए गए इस परीक्षण में बुन्देलखण्ड की जलवायु में पुरे साल भर पशुओं को पोषक हरा चारा देने के लिए लुसर्न की फसल को सफल पाया गया। यह फसल पशुओं को हरा चारा प्रदान करेगी। जिससे किसानों द्वारा अन्ना जानवरों को फसलों में जाने से रोका जा सकता है। इससे किसान अन्ना जानवरों से होने वाली परेशानी से छुटकारा पा सकेंगे।

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पशुओं में दूध का उत्पादन बढ़ाने में मदद करता है यह चारा

डा. कोल्हापुरे ने बताया कि लगातार तीन से चार साल चलने वाली इस फसल में 18 से 22 प्रतिशत क्रुड प्रोटीन और 25 से 35 प्रतिशत क्रुड फाइबर पाया जाता है, जो पशुओं में दूध का उत्पादन बढ़ाने में और उनकी अच्छी सेहत बनाने में सहायक होते है। इसके साथ ही डा. कोल्हापुरे ने यह भी बताया कि इस चारे के उपयोग से मादा पशुओं समय से ऋतु (गरम होना) में आती है और गभर्धारणा में भी बहुत उपयोगी होता है। इस चारे की बुवाई से भूमि में नाइट्रोजन स्थिरीकरण का काम सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा तेजी से किया जाता है।

लुसर्न का वैज्ञानिक नाम है मेडीकागो सटेवा

बरसीम की परिवार से नाता रखने वाली लुसर्न का वैज्ञानिक नाम मेडीकागो सटेवा है, किन्तु बरसीम की फसल सिर्फ चार से पांच महीने तक ही चलती है और लुसर्न की फसल लगातार तीन से चार साल तक लगातार चलती है। इसकी पहली कटाई किसानों द्वारा 45 से 55 दिन में की जा सकती है और उसके बाद की कटाई हर 21 से 25 दिन में की जा सकती है। बता दें कि किसानों को लुसर्न की खेती बार-बार बोने की जरूरत नहीं है। एक बार बोने से इस फसल से 3 से 4 साल तक पशुओं को हरा चारा खिलाया जा सकता है।

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इस फसल से प्रति एकड़ 20 से 22 क्विंटल निकलता है हरा चारा

बुंदेलखंड के बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में यह पाया गया है कि किसान हर कटाई में इस फसल से प्रति एकड़ 20 से 22 क्विंटल हरा चारा एकत्रित करके अन्ना जानवरों को खिला सकते है। इससे किसान अपने खेतों में अन्ना जानवरों को जाने से रोक सकेंगे। इस फसल का बुवाई का समय नवम्बर महीने के पहले दो हफ्ते का होता है। जिसकी भूमि की तैयारी रबी फसल के साथ ही की जाती है। जन संपर्क अधिकारी डॉ. बीके ने बताया कि इस फसल से सम्बन्धित अधिक जानकारी अपने निकटतम कृषि केन्द्र से प्राप्त की जा सकती है।

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