हाथ नहीं आए चंद्रशेखर आजाद सांडर्स हत्याकांड के बाद अंग्रेज सरकार बड़ी ही सरगर्मी से चंद्रशेखर आजाद की तलाश कर रही थी। तब उनका ज्यादातर समय बुंदेलखंड में ही बीता। वह यहां क्रांतिकारी मास्टर रुद्रनारायण के यहां छिपे रहे। इस बीच कई बार पुलिस ने मास्टर रुद्रनारायण के यहां पर दबिश दी, इसके बावजूद चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजी हुकूमत के हाथ नहीं आ सके। इतिहासकार जानकी शरण वर्मा बताते हैं कि मास्टर रुद्रनारायण के अलावा कुछ दिन नई बस्ती में मोटर ड्राइवर रामानंद के यहां भी रहे। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद करीब डेढ़-दो साल ओरछा के जंगल में सातार नदी के किनारे रहे। वह यहां साधुवेश में रहे। इस बीच जब वहां पर धरपकड़ के लिए तलाश तेज हुई तो मास्टर रुद्रनारायण उन्हें दतिया में जागीरदार रघुनाथ की कोठी पर छोड़ आए। वह वहां काफी समय तक अज्ञातवास के रूप में रहे। ओरछा के सातार तट पर झांसी के अन्य क्रांतिकारी भगवानदास माहौर और सदाशिवराव मलकापुरकर उनसे मिल कर मार्गदर्शन लिया करते थे।
आजाद ही रहे आजाद क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का कहना रहता था कि जीते जी वह आजाद ही रहेगा। वह अपने इसी विश्वास के प्रति जीवन पर्यंत दृढ़ रहे। अंग्रेजी साम्राज्य से देश को मुक्त कराने का सपना चंद्रशेखर का था। जब वह 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों द्वारा घेर लिए गए, तो उन्होंने पूरी बहादुरी से मुकाबला किया। जब उनके पास केवल एक कारतूस बचा तो उन्होंने खुद को गोली मारकर देश की आजादी के लिए प्राणोत्सर्ग कर दिया।