दीपावली के बाद राजा की हुई थी मौत वीरांगना पथ सेवक समिति के संयोजक डॉक्टर सुनील तिवारी कहते हैं कि 1853 में दीपावली के बाद राजा गंगाधर राव की मौत हो गई थी। उनकी मौत के बाद पहली होली को लोगों ने शोक के तौर पर नहीं मनाया। उसी समय से यह परम्परा बन गई कि झांसी के लोग होली के दिन होली नहीं खेलते। हालाँकि अब होली के दिन लोगों ने होली खेलना शुरू कर दिया है क्योंकि बहुत सारे बाहर के लोगों का झाँसी आगमन हुआ और वे अपने तरह से होली मनाते रहे। इसका असर झाँसी पर भी पड़ा और झाँसी में भी लोग होली के दिन होली खेलने लगे लेकिन झांसी शहर में परकोटे के भीतर रहने वाले बहुत सारे परिवार अभी भी इस परम्परा को मानते हैं और होली के अगले दिन होली मनाते हैं।
अंग्रेजों के विरोध में नहीं मनाई थी होली झांसी में होली के दिन होली न मनाने के पीछे जो दूसरा कारण बताया जाता है, वह है अंग्रेजों के खिलाफ गुस्से का इजहार। इतिहासकार ओम शंकर असर की किताब ‘ महारानी लक्ष्मी बाई और उनकी झाँसी’ में दर्ज विवरण के मुताबिक होली के दिन ही अंग्रेजों का यह फरमान झांसी पहुंचा था कि ब्रिटिश सरकार ने रानी के दत्तक पुत्र दामोदर राव को झाँसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया था। माना जाता है कि अंग्रेजी सरकार के इसी फरमान के खिलाफ रानी झाँसी के समर्थन में लोगों ने होली नहीं मनाने का निर्णय लिया था।
हिरण्यकश्यप के वध से दुखी थे लोग होली न मनाने के दो कारणों से अलग स्थानीय इतिहास के जानकर हरगोविंद कुशवाहा एक अलग कारण बताते हुए कहते हैं कि सिर्फ झाँसी ही नहीं बल्कि पूरे बुंदेलखंड में होली के दिन होली नहीं मनाने की परम्परा रही है। वे कहते हैं कि झाँसी के एरच में हिरण्यकश्यप की राजधानी थी और होली के दिन हिरण्यकश्यप का वध हुआ था। राजा के वध के बाद उनके परिवार और जनता में दुःख का माहौल था और इसकी कारण पूरे बुंदेलखंड में होली के दिन होली नहीं मनाने की परम्परा रही है।