झांसी

आरोप-प्रत्यारोप वाले प्रचार के तूफान में उड़ गए बुंदेलखंड में रोजी-रोटी और पानी के अरमान

सिर्फ चुनावी मौसम में खूब उमड़ते हैं वायदों के बादल, लेकिन प्यासे के प्यासे रह जाते धरती और लोग

झांसीApr 13, 2019 / 02:46 pm

Ruchi Sharma

 
 

झांसी. चार लोकसभा सीटों वाले बुंदेलखंड में पानी की कहानी बेहद त्रासदपूर्ण है। यहां चुनावी मौसम आते ही विकास के वायदों के बादल तो जोर-शोर से उमड़ते-घुमड़ते हैं, लेकिन इनके यथार्थ में धरातल पर नहीं उतरने के कारण यहां की धरती और लोग दोनों ही प्यासे के प्यासे रह जाते हैं। अब एक बार फिर 2019 के चुनाव सिर पर हैं। इसके बावजूद रोजी-रोटी और पानी जैसे बुनियादी मुद्दे चुनावी फिजा से गायब हैं। इन दिनों भाजपा जहां मोदी मैजिक और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर दुबारा पीएम मोदी की ताजपोशी का सपना देख रही है। वहीं, सपा-बसपा गठबंधन के साथ ही कांग्रेस भी आरोप-प्रत्यारोप के आधार पर मोदी को सत्ता से बेदखल करने का दम भरने में लगी है।
ये चार सीटें हैं बुंदेलखंड में

बुंदेलखंड में लोकसभा की चार सीटें हैं। इसमें सात जिले आते हैं। झांसी और ललितपुर जिलों के हिस्सों को मिलाकर झांसी-ललितपुर संसदीय सीट बनती है। इसके अलावा अन्य जिलों के हिस्सों को मिलाकर बांदा-चित्रकूट, जालौन-गरौठा-भोगनीपुर और हमीरपुर-महोबा-तिंदवारी संसदीय सीटें हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में सबका साथ-सबका विकास के नारे पर बुंदेलखंड की जनता ने यहां की चारों ही सीटें भारतीय जनता पार्टी की झोली में डाल दी थीं। इसके बाद 2017 में भी जनता ने अपना भरोसा भारतीय जनता पार्टी पर दोहराते हुए सभी 19 सीटों पर कमल खिलाया। समय-समय पर बुंदेलखंड के विकास के लिए योजनाओं की घोषणाएं हुईं। योगी सरकार ने तो सभी गांवों को पाइप से पेयजल की सप्लाई वाली योजना को हरी झंडी दी। ये योजनाएं कब धरातल पर आएंगी, यही सवाल सबसे बड़ा है? फिलहाल, चुनावी दुंदुभि बज चुकी है। गांव-गांव चुनाव का शोर है, लेकिन यहां के बहुतायत इलाकों में जमीन और लोग प्यासे के प्यासे हैं।
शहरी इलाके भी झेल रहे जलसंकट की त्रासदी

बुंदेलखंड के जल संकट की त्रासदी तमाम गांवों के साथ ही शहरी इलाके भी झेल रहे हैं। बानगी के तौर पर बुंदेलखंड के सबसे बड़े जिले झांसी की तस्वीर को लेते हैं। यहां पर समय-समय पर पेयजल मुहैया कराने के लिए तमाम योजनाओं पर काम हुआ, लेकिन जब कसौटी पर कसने का वक्त आया तो व्यवस्थाएं नाकाफी ही साबित हुईं। एक बार फिर चुनाव की दहलीज पर खड़े बुंदेलखंड में लोग जलसंकट की मार झेल रहे हैं। उनका ज्यादा वक्त पानी का जुगाड़ करने में ही बीतता है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि चुनावी बेला में लोगों के लिए रोजी-रोटी और पानी पर बात नहीं होती दिख रही है। सभी दल और नेता अपनी कमीज को ज्यादा सफेद बताकर जनता का विश्वास हासिल करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
 
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