झांसी

जयंती पर याद किए गए पंडित दीनदयाल उपाध्याय, बताया- ब्रिटिश शासन में किया था इसका कड़ा विरोध

जयंती पर याद किए गए पंडित दीनदयाल उपाध्याय, बताया- ब्रिटिश शासन में किया था इसका कड़ा विरोध

झांसीSep 25, 2018 / 10:49 pm

BK Gupta

जयंती पर याद किए गए पंडित दीनदयाल उपाध्याय, बताया- ब्रिटिश शासन में किया था इसका कड़ा विरोध

झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान में आयोजित विशेष कार्यक्रम में एकात्म मानववाद के प्रणेता और भारतीय जनसंघ के सह संस्थापक सदस्य पंडित दीनदयाल उपाध्याय को भावपूर्वक याद किया गया। वक्ताओं ने युवाओं से पंडित दीनदयाल के आदर्शों को आत्मसात कर देश के विकास में सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान किया।
इसका किया था कड़ा विरोध
यह कार्यक्रम डा. सी.पी. पैन्यूली के निर्देशन में आयोजित किया गया। डा. पैन्यूली ने पंडित दीनदयाल के आदर्शों का विस्तार से उल्लेख किया। डा. पैन्यूली ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय प्रख्यात विचारक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, इतिहासकार और पत्रकार के रूप में पहचान रखते थे। उन्होंने पूरे देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी बने। उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान पश्चिमी धर्म निरपेक्षता और पश्चिमी लोकतंत्र का आंख बंद कर समर्थन करने के तौर तरीकों का भी कड़़ा विरोध किया था।
इसे मानने से किया था साफ इंकार
संस्थान के वरिष्ठ शिक्षक उमेश शुक्ल ने पंडित दीनदयाल के एकात्म मानववाद के विचारों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। शुक्ल ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने लोकतंत्र की अवधारणा को सरलता से स्वीकार कर लिया, लेकिन पश्चिमी कुलीन तंत्र, शोषण और पूंजीवादी व्यवस्था के मानकों को मानने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने अपना पूरा जीवन लोकतंत्र को शक्तिशाली बनाने और जनता की बातों को आगे रखने में खपा दिया। अपनी इस राजनीतिक दर्शन के माध्यम से उन्होंने हर मनुष्य के शारीरिक, बौद्धिक, चेतना और आत्मिक विकास की बात कही। उन्होंने देश में विकेंदीकृत राजनीति की बात कही और आत्म निर्भर अर्थव्यवस्था का नारा दिया। अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने राष्ट्र धर्म, स्वदेश और पांचजन्य जैसे पत्र पत्रिकाओं को शुरू कराया और उनके संपादन का दायित्व भी बखूबी निभाया। पंडित उपाध्याय के अनुसार ‘एकात्म मानववाद’ प्रत्येक मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का एक एकीकृत कार्यक्रम है। उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत पश्चिमी अवधारणाओं जैसे व्यक्तिवाद, लोकतंत्र, समाजवाद, साम्यवाद और पूंजीवाद पर निर्भर नहीं हो सकता है। उनका मानना था कि भारतीय मेधा पश्चिमी सिद्धांतों और विचारधाराओं से घुटन महसूस कर रही है। परिणामस्वरूप मौलिक भारतीय विचारधारा के विकास और विस्तार में बहुत बाधा आ रही है। उनके गुणों से प्रभावित होकर ही जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने यह कहा था कि यदि उनके पास दो दीनदयाल होते तो वे भारत का राजनीतिक चेहरा ही बदल देते। इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों अंजली, अभीष्ट श्रीवास्तव, राघवेंद्र मेहरा आदि ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवनवृत्त और उनकी उपलब्धियों का जिक्र कर उन्हें भावपूर्वक याद किया।
प्रत्येक व्यक्ति का हो सम्मान
राघवेंद्र दीक्षित ने कहा कि पंडित उपाध्याय का विचार था कि प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान करना प्रशासन का कर्तव्य होना चाहिए। लोकतंत्र को अपनी सीमाओं से परे नहीं जाना चाहिए। जनता की राय उनके विश्वास और धर्म के आलोक में सुनिश्चित करना चाहिए। इस कार्यक्रम में कौशल त्रिपाठी, जय सिंह, अभिषेक कुमार व सतीश साहनी ने भी विचार रखे। अंत में अभिषेक कुमार ने आभार जताया।

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