यह है पूरी कहानी
यह कहानी झांसी 18 किलोमीटर दूर स्थित ओरछा के दीवान हरदौल, उनकी बहन कुंजा बाई और भाभी चंपावती की है। उस वक्त ओरछा के राजा रहे वीर सिंह देव के छोटे बेटे हरदौल थे और उनके बड़े बेटे जुझार सिंह को गद्दी पर बैठाया गया था। जब जुझार सिंह ओरछा के राजा बने तब उन्होंने अपने छोटे भाई हरदौल को वहां का दीवान बनाया। हरदौल बचपन से ही बहुत पराक्रमी थे। उन्होंने बार-बार ओरछा में हुए मुगलों के आक्रमण को रोका।
राजा ने भाई को जहर पिलाने का आदेश दिया था पत्नी को
ओरछा के गज़ेटियर के अनुसार, जब राजा जुझार सिंह का विवाह चंपावती से हुआ उस समय हरदौल बहुत छोटे थे। हरदौल की अवस्था देख चंपावती ने वचन लिया था कि मैं इनको ही अपनी संतान मानूंगी और जीते जी कोई संतान पैदा नहीं करूंगी। भाभी और देवर में अपार स्नेह था। इतना ही नहीं, हरदौल चंपावती के इतने लाड़ले थे कि वह राजा जुझार सिंह को खाना बाद में देती थीं और लाला हरदौल को खाना पहले परोसती थीं। समय गुजरता गया और हरदौल युवा अवस्था में आए। उनका सुंदर रूप और अच्छी कद काठी पर लोगों को ईर्ष्या होने लगी और राजा जुझार सिंह के किसी ने कान भर दिए की भाभी चंपावती और देवर हरदौल के बीच नाजायज संबंध है। राजा ने खुद अपनी पत्नी को आदेश दिया कि जाकर उनके अनुज हरदौल को जहर पिलाएं।
भाभी ने यह बात पूरी ईमानदारी से लाला हरदौल को बता दी लेकिन समझदार हरदौल ने भाभी का दामन साफ रखने के लिए खुद ही जहर पी लिया।
मौत के बाद भी निभाया था वचन
लाला हरदौल की मौत के बाद उनकी भांजी की शादी होनी थी। इसमें उनकी बहन कुंजा बाई अपने बड़े भाई जुझार सिंह के पास पहुंची और बेटी की शादी का निमंत्रण दिया। तब जुझार सिंह ने मजाक उड़ाते हुए निमंत्रण अस्वीकार कर दिया। दुखी होकर कुंजा बाई लाला हरदौल की समाधि के पास पहुंचीं और राखी बांधकर आने का वचन लिया। तब बहन के सम्मान के लिए लाला हरदौल मौत के बाद भी पूरा दहेज का सामान लेकर भांजी की शादी में पहुंचे। तब से लाला हरदौल को बुंदेलखंड के लोग देवता मानकर पूजने लगे और गांव-गांव उनके मंदिर बन गए। वह परंपरा आज भी कायम है और यहां की महिलाएं सावन के दिन पहली राखी लाला हरदौल को बांधती हैं और रक्षा का वचन लेती हैं।