झांसी

उच्च शिक्षा में है इस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत

उच्च शिक्षा में है इस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत

झांसीSep 17, 2018 / 10:34 pm

BK Gupta

उच्च शिक्षा में है इस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत

झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.सुरेंद्र दुबे ने कहा कि आज के आधुनिक युग में नैतिक मूल्यों के आधार पर ही जीवन यापन करने की आवश्यकता है। नैतिकता पढ़ने-पढ़ाने की वस्तु नहीं है, बल्कि नैतिकता को आचरण में उतारने की आवश्यकता है। अध्यापकों को भी चाहिए कि वे अपने व्यवहार के माध्यम से विद्यार्थियों को शिक्षित करें। प्रो.दुबे आज बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय परिसर में संचालित खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान, अधिष्ठाता छात्र कल्याण तथा राष्ट्रीय सेवा योजना के संयुक्त तत्वावधान में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के 23वें दीक्षान्त समारोह के अवसर पर विश्वविद्यालय के गांधी सभागार में आयोजित किये जा रहे दीक्षान्त सप्ताह व्याख्यानमाला के अन्तर्गत ‘उच्च शिक्षा में नैतिक शिक्षा का महत्व एवं प्रासंगिकता’ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन के अवसर पर अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे।
इस रथ पर ऐसे लगाएं लगाम
कुलपति प्रो.दुबे ने कहा कि बालक के व्यवहार से बालक के परिवार और परिवार द्वारा दिए गए संस्कारों का पता चलता है। उन्होंने विद्यार्थियों का आह्वान किया कि बुद्धि रूपी सारथी के द्वारा मन की लगाम के माध्यम से इन्द्रिय रूपी रथ को नियन्त्रित किया जा सकता है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं हिमाचल विश्वविद्यालय शिमला के पूर्व कुलपति प्रो.ए.डी.एन. बाजपेयी ने कहा कि उच्च शिक्षा के अतिरिक्त शिक्षा के सभी स्तरों पर नैतिक शिक्षा की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों में नैतिकता सामाजिक होती है, इसके विपरीत हमारे देश में नैतिकता हमारे लिए धर्म है। इससे विचलित होने का कोई कारण नहीं है। हमारी नैतिकता किसी बाहरी उपकरणों से संचालित होने वाली चीज नहीं है, हमारी नैतिकता अंतकरण से संचालित होती है। यह आत्मा द्वारा स्थापित समावेशी सार्वभौमिकता है। हमें अपने अंतकरण में झांकना होगा। प्रो.बाजपेयी ने कहा की उच्च शिक्षा में अध्ययन, अध्यापन तथा अनुसंधान तीन प्रमुख बातें होती है। य़द्यपि तीनों में नैतिकता का समावेश आवश्यक है, लेकिन अनुसंधान के क्षेत्र में सर्वाधिक नैतिकता उच्च शिक्षा के लिए आवश्यक है। उनका मानना था कि विशेष रूप से हमारे देश के इतिहास में जो छेड़छाड़ की गई है उसके लिए विशद अनुसंधान की आवश्यकता है।
बढ़ रही हैं दूरियां
समारोह के विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय शिक्षक महासंघ के संयोजक महेंद्र कुमार ने कहा कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों तथा छात्रों में संवेदनाएं समाप्त हो गई है। यही कारण है कि विश्वविद्यालय परिसर में शिक्षकों और छात्रों के बीच दूरी निरंतर बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि हम छात्रों को गीता पढ़ाने तो जा रहे हैं लेकिन गीता सिखा नहीं रहे है। छात्र गीता के अनुसार आचरण नहीं करते हैं। बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के वित्त अधिकारी धर्मपाल ने कहा कि नैतिक शिक्षा तो बालक के प्रारम्भिक स्तर पर ही दी जानी चाहिए। यह इस देश का दुर्भाग्य है कि उच्च शिक्षा में पर्यावरण शिक्षा तथा नैतिक शिक्षा उच्च शिक्षा में एक आवश्यक अंग है लेकिन उसके बाद भी उसमें सिर्फ न्यूनतम अंकों से उत्तीर्ण करना होता है। उन्होंने कहा कि शहरी लोगों की अपेक्षा ग्रामीणों को आज भी नैतिकता का पर्याप्त ज्ञान है।
विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व गृह सचिव एवं वरिष्ठ परामर्शदाता उत्तर प्रदेश राज्य आयुष मिशन मणि प्रसाद मिश्र ने कहा कि नैतिक शिक्षा मानव को धरती से उसके चरम स्तर तक पहुंचाती है। उन्होंने कहा कि मानव शरीर भाग्य से मिलता है इसलिए हमें इसका सदुपयोग करना चाहिये। इस अवसर पर यशोवर्धन गुप्त ने कहा कि यद्यपि नैतिक शिक्षा बालक को उसके घर से माता द्वारा ही प्रदान की जाती है, जबकि शेष उसे प्राथमिक स्तर पर दी जानी चाहिये, परन्तु इन सबके बाद भी उच्च शिक्षा नैतिक शिक्षा की नितान्त आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने विचार और क्रिया में सामंजस्य बनाए रखें।
ये लोग रहे उपस्थित
इस अवसर पर बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति प्रो.श्रीराम अग्रवाल, प्रो.वी.के.सहगल, प्रो.बी.पी.खरे, प्रो. प्रतीक अग्रवाल, बिपिन बिहारी महाविद्यालय के प्राचार्य डा.एम.एम.पाण्डेय, बुन्देलखंड महाविद्यालय के प्राचार्य डा.बाबूलाल तिवारी, डा.एस.के.राय, डा.ऋषि कुमार सक्सेना, डा.ममता सिंह, डा.रमेश कुमार, डा.अभिमन्यु सिंह, डा.राधिका चैधरी, डा.नूपुर गौतम, डा.नीता यादव, डा.अनु सिंगला, डा. पूनम मेहरोत्रा, डा.विनीत कुमार, डा.टी.के.शर्मा, डा.सुनील त्रिवेदी, डा.नेहा मिश्रा, डा.सरोज कुमार, बृजेन्द्र शुक्ला आदि विभिन्न विभागों के शिक्षक एवं शिक्षिकाएं उपस्थित रहे। समारोह का संचालन डा.अंचला पाण्डेय ने किया।

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