माता पिता अपने बेटे से उम्मीद लगाते है कि बेटा बुढ़ापे में सहारा बनेगा। उन्होंने बताया कि फैसला को लेकर मन में काफी उधेड़बुन चलती रही, लेकिन अंत में पिता की सेवा का संकल्प करते हुए हाल ही में कार्मिक विभाग को अपना इस्तीफा भेज दिया। उन्होंने बताया कि 1985 में उदयपुर में नायब तहसीलदार के अलावा जवाहर कला केन्द्र में भी सेवाएं दे चुके हैं। रंगमंच में उन्हें शुरू से ही काफी दिलचस्पी भी रही है।
पिता को लेखन का शौक
एसडीएम आचार्य ने बताया कि माता पिता की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म होता है। अगर माता पिता ही खुश नहीं रह सकते तो बेटा खुश रहे या नही, कोई भी अर्थ नहीं है। पिता को लेखन का काफी शौक रहा है, रंगमंच से भी जुडऩे के अलावा महेन्दी रंग लाएगी का टाइटल सांग उनके पिता की ओर से लिखा गया है। उन्होंने बताया कि सेवानिवृति में करीब डेढ साल शेष हैं। चिड़ावा में साथ रखने के सवाल पर कहा कि ड्यूटी में कार्य बढऩे के कारण वे समय नहीं दे सकते।